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नय-रहस्य इसलिए कहा जाता है कि आत्मा, किसी नय अर्थात् जानने से शुद्ध नहीं है, शुद्ध तो वह अपने स्वभाव से ही है। अज्ञानी, शुद्धस्वभाव को नहीं जानते तो भी उनका त्रिकाली स्वभाव तो शुद्ध है ही। शुद्धस्वभाव को न जानने के कारण ही वे संसार में भ्रमण कर रहे हैं।
देखो! स्वभाव से शुद्ध कहने का आशय यह है कि स्वभाव की अपेक्षा शुद्ध है; अतः इसमें भी अपेक्षा का मूक प्रयोग है। यदि अपने आत्मा को स्वभाव की अपेक्षा शुद्ध न माना जाए तो सर्वथा शुद्ध मानने का प्रसंग आने से मिथ्या-एकान्त या नयाभास हो जाएगा। . __इसप्रकार नय और अपेक्षा पर्यायवाची सिद्ध होने से यह स्पष्ट हो जाता है कि सापेक्षनय ही सम्यक् होते हैं, निरपेक्षनय नहीं।
इसप्रकार सात बिन्दुओं के माध्यम से नयों का सामान्य स्वरूप जानकर जिनवाणी का अभ्यास करना प्रत्येक आत्मार्थी के लिए श्रेयस्कर है।
अभ्यास-प्रश्न . 1. नयों की प्रमुख विशेषताएँ लिखते हुए उनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए। 2. निरपेक्ष नय मिथ्या होते हैं और सापेक्ष नय ही सम्यक् होते हैं - इस कथन
का आशय स्पष्ट कीजिए। 3. नय-प्रयोग से एकान्तवाद का नाश किसप्रकार होता है - स्पष्ट कीजिए।