Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 422
________________ सप्तभंग 377 प्रश्न 8 - प्रमाण-वाक्य और नय-वाक्य की पहिचान कैसे हो सकती है? उत्तर - प्रायः प्रमाण-वाक्य में स्यात् पद का प्रयोग और नयवाक्य में एवकार का प्रयोग होता है, परन्तु इस सम्बन्ध में पण्डित देवकीनन्दनजी सिद्धान्त शास्त्री के विचार अत्यन्त उपयोगी हैं। उनके द्वारा लिखित महत्त्वपूर्ण अंश इसप्रकार है - ___"वाक्य दो प्रकार के होते हैं - प्रमाण-वाक्य और नयवाक्य। यों साधारणतया प्रमाणवाक्य और नयवाक्य का विश्लेषण करना कठिन है, क्योंकि यह सब वक्ता की विवक्षा पर निर्भर करता है। बहुत-से विद्वान् धर्मी-वचन को प्रमाण-वाक्य और धर्म-वचन को नय-वाक्य कहते हैं; पर धर्मी, धर्म के बिना और धर्म, धर्मी के बिना नहीं पाया जाता; इसलिए ऐसा भेद नहीं किया जा सकता। इसप्रकार जब वाक्य के दो प्रकार होते हैं तो सप्तभंगी भी दो तरह की हो जाती है।" प्रश्न 9 - सप्तभंगी में प्रयुक्त सातों भंग वस्तु के किस-किस धर्म के वाचक हैं? उत्तर - इन सात भंगों में से प्रथम भंग में प्रधानरूप से सत्त्वधर्म (अस्तित्व) की प्रतीति होती है। दूसरे भंग में प्रधानरूप से नास्तित्वधर्म की प्रतीति होती है। तीसरे भंग में क्रम से प्रमुखता को प्राप्त हुए उक्त दोनों धर्म की प्रतीति होती है। चौथे भंग में एक साथ उक्त दोनों धर्म की प्रधानता होने से अवक्तव्यरूप धर्म की प्रतीति होती है। पाँचवें भंग में सत्त्वधर्म विशिष्ट अवक्तव्यधर्म की प्रतीति होती है। छठे भंग में नास्तित्व विशिष्ट अवक्तव्यधर्म की प्रतीति होती है और सातवें भंग में क्रम से प्रमुखता को प्राप्त हुए अस्तित्व और नास्तित्व विशिष्ट अवक्तव्यधर्म की प्रतीति होती है।

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