Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 425
________________ 380 : नय-रहस्य पंचास्तिकाय, गाथा 14 की टीका में आचार्य जयसेन लिखते हैं - 'द्रव्य है' - यह दुष्प्रमाण वाक्य है और 'द्रव्य है ही' - यह दुर्नय वाक्य है। अतः यह स्पष्ट समझना चाहिए कि नय-सप्तभंगी, सम्यक् नयरूप है और दुर्नय-सप्तभंगी, नयाभास है तथा प्रमाण-सप्तभंगी सम्यक् प्रमाणरूप है और दुष्प्रमाण-सप्तभंगी, प्रमाणाभास है, क्योंकि वस्तुस्वरूप का निर्णय प्रमाण और नय से होता है, प्रमाणाभास और नयाभास से नहीं। उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन से स्पष्ट है कि वस्तुस्वरूप समझनेसमझाने में ये सप्तभंग अत्यन्त उपयोगी हैं। इनके माध्यम से वस्तु का सम्पूर्ण स्वरूप जानकर, आत्महित किया जा सकता है। अभ्यास-प्रश्न 1. सप्तभंगी विषय पर सांगोपांग निबन्ध लिखिए। अन्तिम निवेदन द्रव्यस्वभाव प्रकाश कर, परम भाव परकाश। निज परिणति में नित रहे, नय-रहस्य का वास।। पंच-प्रभु की कृपा से, ग्रन्थ हुआ यह पूर्ण। भूल-चूक यदि रह गई, विज्ञ करें सम्पूर्ण।। प्राप्त हुआ जिनके निमित्त, मुक्ति-मार्ग महान। विनय-सहित वन्दन सदा, गुरुवर श्री कहान।। * * *

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