Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 421
________________ 376 नय-रहस्य दुर्नयात्मक और दुष्प्रमाणात्मक सप्तभंगी भी कही जा सकती हैं। प्रश्न 7 - प्रमाण और नय सप्तभंगी में क्या अन्तर है? उत्तर - निम्नलिखित तालिका द्वारा यह अन्तर स्पष्ट समझा जा सकता है - प्रमाणः सप्तभंगी . नय सप्तभंगी 1. प्रमाण के माध्यम से सम्पूर्ण | 1. नय के माध्यम से एकदेश वस्तुस्वरूप का प्रतिपादन होता है। वस्तुस्वरूप का प्रतिपादन होता है। 2. सातों भंग जब सकलादेशी 2. सातों ही भंग जब विकलादेशी होते हैं, तब प्रमाण सप्तभंगी कही होते हैं, तब नय सप्तभंगी कही जाती है। जाती है। 3. एक धर्म के द्वारा समस्त वस्तु 3. एक धर्म को मुख्य करके अन्य को अखण्डरूप से ग्रहण करना | धर्मों को गौण करना नय है, इसे प्रमाण है, इसे सकलादेश कहते हैं। विकलादेश भी कहते हैं। 4. ‘स्यादस्ति' - यह प्रमाण वाक्य | 4. स्यादस्त्येव द्रव्यम् - यह • सम्पूर्ण वस्तु का बोध कराता है। नयवाक्य, वस्तु के एक धर्म का बोध कराता है। 5. इसमें 'भी' का प्रयोग किया | 5. इसमें 'ही' का प्रयोग किया जा जाता है। जैसे, वस्तु कथंचित् | जा जाता है। जैसे, स्वचतुष्टय की अस्तिरूप भी है। अपेक्षा वस्तु अस्तिरूप ही है। 6. अपेक्षा स्पष्ट न करें तो स्यात् | 6. अपेक्षा बताकर उस धर्म की या कथंचित् शब्द का प्रयोग किया | मुख्यता से कथन होता है। जैसे - जाता है। जैसे, वस्तु स्यात् | स्वचतुष्टय की अपेक्षा वस्तु अस्तिरूप है। अस्तिरूप है। (आधार - पंचास्तिकाय, गाथा 14 की टीका)

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