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नयों के सन्दर्भ में : आगम और अध्यात्म आगम-अध्यात्म का स्वरूप सम्यक् प्रकार से नहीं जानता; इसलिए मूढ जीव न आगमी, न अध्यात्मी, निर्वेदकत्वात्।
चार अनुयोगों के अभ्यास की उपयोगिता के सन्दर्भ में मोक्षमार्ग प्रकाशक के आठवें अध्याय का गहन अध्ययन अवश्य करना चाहिए।
प्रश्न 4 - आगम और अध्यात्म दोनों शैलियों में पाये जानेवाले नय-प्रयोग समान हैं या उनमें अन्तर है?
उत्तर - अनिराकृतप्रतिपक्षो वस्त्वंशग्राही ज्ञातुरभिप्रायो नयः - नय की यह सामान्य परिभाषा, आगम-अध्यात्म सर्वत्र लागू होती है, परन्तु दोनों शैलियों में नयों के अलग-अलग भेद-प्रभेदों का प्रयोग होता है।
__ आगम शैली में मुख्यरूप से मूलनय द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनय तथा उनके ही अन्तर्गत नैगम-संग्रह-व्यवहार-ऋजुसूत्र-शब्द-सममिरूढ़एवंभूत - इन सात नयों का प्रयोग होता है। इन नयों की विस्तृत चर्चा आगामी अध्यायों में की जाएगी। उपनय अर्थात् सद्भूत, असद्भूत और उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय का प्रयोग भी आगम शैली में पाया जाता है।
यद्यपि आगम के नयों में भी आत्मा की चर्चा होती है, तथापि उसमें वस्तु-स्वरूप के प्रतिपादन की मुख्यता रहती है, जो आत्म-हित में भी सहायक होती है तथा जीव के गुणस्थान-मार्गणास्थान-जीवसमास आदि का विस्तृत वर्णन होता है। जबकि अध्यात्म शैली में परम उपादेयभूत शुद्धात्म तत्त्व की मुख्यता से कथन होता है।
यद्यपि निश्चय-व्यवहार, मुख्यरूप से अध्यात्म के नय हैं, तथापि . जब इनका प्रयोग, आत्मा के अतिरिक्त अन्य द्रव्यों के सन्दर्भ में होता है, तब आगम शैली की मुख्यता हो जाती है।