Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 371
________________ 326 नय-रहस्य अर्थात् यह नय या भंग यह बता रहा है कि स्व- द्रव्य-क्षेत्र - कालभाव से अस्तित्व का वर्णन करके यह नहीं समझना चाहिए कि सम्पूर्ण वस्तु का वर्णन हो गया । इसी प्रकार नास्तित्व - अवक्तव्यधर्म भी यह बताता है कि परद्रव्य-क्षेत्र - काल - भाव से नास्तित्व की अपेक्षा वस्तु का वर्णन करने पर भी वस्तु का बहुत अंश अवक्तव्य रह जाता है । यही स्थिति सातवें अस्तित्व - नास्तित्व- अवक्तव्यधर्म के बारे में भी समझनी चाहिए। क्रमशः अस्तित्व - नास्तित्व दोनों धर्मों का वर्णन करने पर भी वस्तु का सम्पूर्ण वर्णन नहीं हो सकता है, क्योंकि नित्यअनित्य आदि अन्य धर्म- युगल तथा ज्ञानादि अनन्त गुण नहीं कहे गए। किसी भी एक धर्मयुगल से वर्णन करने पर भी उसी समय वस्तु अवक्तव्य भी रह जाती है - इसी योग्यता का वाचक सातवाँ भंग है । इसीप्रकार सातवाँ यह भी बताता है कि वस्तु के अनेक धर्म क्रमशः वक्तव्य तो हैं, परन्तु युगपत् एक साथ नहीं हैं। इन सप्त भंगों का विस्तृत वर्णन सप्तभंगी सम्बन्धी अधिकार में भी किया जाएगा। (10-11) विकल्पनय और अविकल्पनय आत्मद्रव्य, विकल्पनय से बालक, कुमार तथा वृद्ध - ऐसे एक पुरुष की भाँति सविकल्प है और अविकल्पनय से एक पुरुषमात्र की भाँति अविकल्प है। इस सम्बन्ध में निम्न बिन्दुओं से विचार करते हैं - 1. यहाँ विकल्प का अर्थ भेद है और अविकल्प का अर्थ अभेद है। जिसप्रकार एक ही पुरुष, बालक जवान और वृद्ध - इन अवस्थाओं का धारण करनेवाला होने से बालक, जवान एवं वृद्ध - ऐसे तीन

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