Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 413
________________ 368 नय-रहस्य किसी की माता, पत्नी, बहन आदि होता ही नहीं है, परन्तु व्यवहार में एक ही स्त्री को उसके पुत्र की अपेक्षा माता, पति की अपेक्षा पत्नी, भाई की अपेक्षा बहन आदि कहा जाता है। ___ यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि आत्महित की दृष्टि से आत्मा में विद्यमान परस्पर विरोधी धर्मों में द्रव्यगत धर्मों को मुख्य करके निश्चय और पर्यायगत धर्मों को गौण करके व्यवहार कहा जाता है। समयसार, गाथा 11 में यही पद्धति अपनाई है और पूज्य गुरुदेवश्री ने अपने प्रवचनों में इसका बहुत सरल और विस्तृत विवेचन करते हुए बार-बार कहा है कि पर्यायों का सर्वथा निषेध नहीं समझना चाहिए, उन्हें गौण करके अभूतार्थ कहा है। इन दोनों शैलियों को भी कथंचित् एक और कथंचित् भिन्न कहा जा सकता है। सापेक्ष कथन की दृष्टि से इनमें समानता है और विषयवस्तु की दृष्टि से भिन्नता है। स्याद्वाद का प्रतिपाद्य विषय, वस्तु में विद्यमान धर्म हैं और निश्चय-व्यवहारनय का विषय, वस्तु का । यथार्थ और उपचरित स्वरूप है। इन दोनों शैलियों के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि निश्चय-व्यवहार और स्याद्वाद शैली में विद्यमान समानता और अन्तर को यथार्थ समझकर, कोई आग्रह रखे बिना यथायोग्य प्रयोग करके वस्तु का स्वरूप समझना चाहिए। यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि इन दोनों शैलियों में निश्चय-व्यवहार का प्रयोग प्रायः मोक्षमार्ग के निरूपण में किया जाता है, जहाँ स्याद्वाद का प्रयोग अटपटा लगता है और स्याद्वाद का प्रयोग अनेकान्त स्वरूप के निरूपण में किया जाता है, जहाँ निश्चयव्यवहार के बजाय उस धर्म सम्बन्धी नयों का प्रयोग किया जाता है। 47 नयों में इसी प्रकार के प्रयोग किये गये हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430