Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 416
________________ 371 सप्तभंग जितना स्पष्ट दिखाई देता है, सप्तभंग का प्रयोग उतना स्पष्टरूप से भासित नहीं होता। विधि-निषेध अथवा अस्ति-नास्ति की, शैली तो जन-जीवन में व्याप्त है। तीसरे-चौथे भंग का प्रयोग भी यदा-कदा दिखाई देता है, परन्तु अन्तिम तीन भंगों का प्रयोग होता दिखाई नहीं देता। इस प्रकरण की चर्चा 47 नयों के अन्तर्गत सप्तभंगी सम्बन्धी नयों में की गई है। डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल ने परमभावप्रकाशक नयचक्र में अनेक ग्रन्थों के आधार से इस विषय पर अत्यन्त सरल एवं व्यवस्थित स्पष्टीकरण किया है। यहाँ प्रश्नोत्तर शैली में इस विषय की संक्षिप्त चर्चा की जा रही है, ताकि इस विषय के प्रमुख बिन्दु पाठकों को हृदयंगम हो सकें - प्रश्न 1 - सप्तभंगी क्या है ? उत्तर - विभिन्न ग्रन्थों में सप्तभंगी की परिभाषाएँ निम्नानुसार उपलब्ध होती हैं - 1. नयों के कथन करने की शैली को ही सप्तभंगी कहते हैं। यहाँ भंग शब्द वस्तु के स्वरूप-विशेष का ही प्रतिपादक है, इससे यह सिद्ध हुआ कि सात भंगों के समूह को सप्तभंगी कहते हैं। - न्यायदीपिका, तृतीय प्रकाश, पृष्ठ 127 2. प्रश्न के अनुसार एक वस्तु में प्रमाण से अविरुद्ध विधिप्रतिषेध धर्मों की कल्पना सप्तभंगी है। - राजवार्तिक, प्रथम अध्याय, पृष्ठ 33 3. प्रमाणवाक्य अथवा नयवाक्य से एक ही वस्तु में अविरोधरूप से जो सत्-असत् आदि धर्मों की कल्पना की जाती है, उसे सप्तभंगी कहते हैं। - पंचास्तिकाय, गाथा 14, तात्पर्यवृत्ति . प्रश्न 2 - सप्तभंगी शैली का प्रयोग करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

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