Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 405
________________ नय - रहस्य अज्ञानता के सूचक हैं। जबकि 'भी' सम्भावना का सूचक होकर, अनुक्त धर्मों की सुनिश्चित सत्ता का सूचक है। स्याद्वाद, सम्भावनावाद का पर्यायवाची नहीं है, अपितु निश्चयात्मक ज्ञान होने से प्रमाणभूत है। 360 4. लौकिक प्रयोग शैली में कभी-कभी 'भी' अपनी बात पर बल देने का काम भी करता है । जैसे, हमने भी दुनिया देखी है, हमने भी शास्त्र पढ़े हैं - इत्यादि कथनों में अपनी तत्सम्बन्धी विशेषताओं पर बल दिया जा रहा है। 5. अपूर्ण या अंश कथन को पूर्णतः न समझ लिया जाए, अतः 'भी' का प्रयोग किया जाता है। एक धर्म का भी कथन अंश का ही कथन है। 6. श्लोकवार्तिक, अध्याय 1, सूत्र 6, श्लोक 53 के अनुसार वाक्यों में 'ही' का प्रयोग अनिष्ट अर्थ की निवृत्ति और दृढ़ता के लिए करना ही चाहिए, अन्यथा कहीं-कहीं वह वाक्य नहीं कहा के समान समझा जाएगा। 7. 'ही' और 'भी' के प्रयोगों की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए पण्डित कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्ताचार्य, जैन न्याय, पृष्ठ 300 पर लिखते हैं - " इसी तरह वाक्य में एवकार ( ही ) का प्रयोग न करने पर भी सर्वथा एकान्त को मानना पड़ेगा, क्योंकि उस स्थिति में अनेकान्त का निराकरण अवश्यम्भावी है। जैसे, 'उपयोग लक्षण जीव का ही है' - इस वाक्य में एवकार (ही) होने से यह सिद्ध होता है कि उपयोग लक्षण अन्य किसी का लक्षण न होकर जीव का ही है; अतः यदि इसमें से 'ही' को निकाल दिया जाए तो उपयोग अजीव का भी लक्षण हो सकता है।

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