Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 385
________________ 340 नय-रहस्य सुनिश्चित क्रम में ही होती हैं। जो पर्याय जब होती है, तब उसके अनुरूप बाह्य प्रयत्न भी होता है, जिसे यहाँ 'संस्कार' शब्द द्वारा कहा जा रहा है। (30-31) कालनय और अकालनय आत्मद्रव्य कालनय से गर्मी के दिनों के अनुसार पकनेवाले आम्रफल के समान समय पर आधार रखनेवाली सिद्धिवाला है और अकालनय से कृत्रिम गर्मी में पकाये गये आम्रफल के समान समय पर आधार नहीं रखनेवाली सिद्धिवाला है। 1. भगवान आत्मा में कार्य की सिद्धि समय पर आधारित हो अर्थात् समय की मुख्यता से हो - ऐसी योग्यता है, जिसे कालधर्म कहते हैं और वह काल के अतिरिक्त अन्य समवायों की प्रधानता से कार्यसिद्धि की योग्यता वाला है, जिसे अकालधर्म कहते हैं। इन दोनों धर्मों को जाननेवाले ज्ञानांश कालनय और अकालनय कहलाते हैं। . 2. कालनय के लिए डाली पर प्राकृतिकरूप से पकनेवाले आमफल का उदाहरण दिया गया है। यद्यपि उसमें भी वृक्ष को सींचना, खाद आदि देना - इत्यादि प्रयत्न किये जाते हैं, पर इन्हें गौण करके काल की मुख्यता से कहा जाता है कि आम, अपने समय में ही पका है। 3. अकालनय को समझने के लिए कृत्रिम गर्मी से पकाये जाने वाले आम का उदाहरण दिया गया है। कृत्रिम गर्मी में रखे गये आम भी एक साथ नहीं पकते, आगे-पीछे पकते हैं। इससे सिद्ध होता है कि कृत्रिम गर्मी, सभी आमों को एक जैसी मिलने पर भी अपनीअपनी योग्यतानुसार अपने-अपने स्वकाल में सभी आम पकते हैं।

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