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द्रव्यार्थिकनय के भेद-प्रभेद -
1. कर्मोपाधिनिरपेक्ष शुद्धद्रव्यार्थिकनय 2. उत्पाद-व्ययनिरपेक्ष सत्ताग्राहक शुद्धद्रव्यार्थिकनय 3. भेद कल्पनानिरपेक्ष शुद्धद्रव्यार्थिकनय 4. कर्मोपाधिसापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिकनय 5. उत्पाद-व्ययसापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिकनय 6. भेदकल्पनासापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिकनय 7. अन्वय द्रव्यार्थिकनय 8. स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिकनय 9. परद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिकनय 10. परमभावग्राहक द्रव्यार्थिकनय 1. कर्मोपाधिनिरपेक्ष शुद्धद्रव्यार्थिकनय · जो नय कर्मों के मध्य में स्थित अर्थात् कर्मों से लिप्त जीव को सिद्ध समान शुद्ध ग्रहण करता है, उसे कर्मोपाधिनिरपेक्ष शुद्धद्रव्यार्थिकनय कहते हैं। .
वर्तमान अवस्था में विद्यमान कर्मोपाधियों को गौण करके त्रिकाली शुद्धद्रव्य को मुख्य किया जाए तो उसका कर्मोपाधियों से अप्रभावित अनन्त शक्तियों का अखण्ड पिण्ड स्वभाव ही जाना जाता है।
यहाँ कर्मोपाधि से आशय मुख्यरूप से मोह-राग-द्वेषादि औदयिक भावों से है, इस अपेक्षा विचार किया जाए तो इस नय का विषय रागादि भावों से भिन्न एक ज्ञायक भाव है। यद्यपि क्षायिक आदि निर्मल भाव, कर्मों के क्षय के निमित्त से होते हैं, अतः उसमें कर्मोदयरूप उपाधि को गौण करने का प्रश्न ही नहीं उठता। दृष्टि के विषय की मुख्यता से विचार किया जाए तो औपशमिक, क्षायोपशमिक, औदयिक