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पक्षातिक्रान्त
101 की संज्ञा देना इतिहास को विकृत करने का विफल प्रयास और द्वेषपूर्ण पक्षपात है।
2. एक अदालत में हत्या के आरोपी को जज के सामने प्रस्तुत किया गया। उसका वकील उसे निरपराधी सिद्ध करने हेतु और सरकारी वकील उसे अपराधी सिद्ध करने हेतु बहस करते हैं। यहाँ पक्षपात और पक्षातिक्रान्त के सन्दर्भ में निम्न परिस्थितियाँ बनती हैं -
अ. वह आरोपी, अपराधी है या निरपराधी, इससे किसी वकील को कोई प्रयोजन नहीं है। वे तो मात्र पैसे के लिए उसके पक्ष या विपक्ष में बहस कर रहे हैं तो वे पैसे के पक्षपाती हैं और सत्य से निरपेक्ष हैं।
ब. लेकिन यदि आरोपी का वकील, उसे अच्छी तरह जानता है कि वास्तव में इसने हत्या नहीं की और वह उसे न्याय दिलाने के लिए उसके पक्ष में लड़ता है तो वह फीस लेते हुए भी पक्षपाती न होकर निष्पक्ष ही है।
स. यदि वह आरोपी वास्तव में हत्यारा है और सरकारी वकील यह जानता है; इसलिए वह कानून की रक्षा के लिए उसे सजा दिलाने के लिए लड़ता है तो वह भी अपना वेतन लेते हुए भी निष्पक्ष ही है, पक्षपाती नहीं।
द. यदि जज साहब साम-दाम-दण्ड भेद से प्रभावित होकर गवाहों और सबूतों को उपेक्षा करके निर्णय देते हैं तो भले वह निर्णय सही हो, परन्तु वे पक्षपाती होंगे, निष्पक्ष नहीं; किन्तु यदि वे गवाहों
और सबूतों के आधार पर अपने विवेक एवं नियमानुसार उसे अपराधी/ निरपराधी घोषित करते हैं तो वे निष्पक्ष ही हैं।
इसीप्रकार गवाहों की निष्पक्षता या पक्षपात के सम्बन्ध में भी . निर्णय कर लेना चाहिए।