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निश्चयनय और व्यवहारनय
( यथार्थ निरूपण)
अ. पर से भिन्न अपने
चैतन्यस्वरूप का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है।
ब. जीव की निर्मल पर्याय होने से आत्मा उसका कर्ता है। स. मुक्ति का मार्ग है।
सम्यग्दर्शन
राग-द्वेषादि शुभाशुभ विकारी भाव ---
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(उपचरित निरूपण)
अ. सच्चे देव - शास्त्र - गुरु और
सात तत्त्व का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है।
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बं. कर्म के उपशम, क्षयोपशम या क्षय से सम्यग्दर्शन होता है। स. देवायु के बन्ध का कारण है।
(यथार्थ निरूपण)
( उपचरित निरूपण)
अ. आत्मा स्वयं रागादि अ. मोहनीयकर्म के उदय से उत्पन्न हुए हैं। काकर्ता है।
ब. बन्ध का कारण है। ब. ज्ञानी के शुभभाव पर मोक्षमार्ग का उपचार करके उसे व्यवहार मोक्षमार्ग कहते हैं ।
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प्रश्न उक्त तालिका में रागादिभावों का कर्ता जीव को कहना यथार्थ निरूपण अर्थात् निश्चयनय का कथन बताया गया है, जबकि समयसार, गाथा 72 से 79 में राग को आत्मा से भिन्न तथा निश्चयनय से पुद्गल का कार्य कहा गया है तो निश्चय से रागादि का कर्ता जीव को माना जाए या पुद्गल को ?
उत्तर
अध्यात्म ग्रन्थों में स्वभाव और विभाव में भेदज्ञान की मुख्यता से, रागादिभावों में अचेतनपना होने से तथा पुद्गल कर्म के उदय का निमित्तपना होने से, बाह्य-पदार्थों के लक्ष्य से होने के कारण तथा रागादि और जीव में तात्त्विक भेद होने से अर्थात् रागादिभाव आस्रव होने से उन्हें निश्चयनय से पुद्गल का कहा गया है; परन्तु जहाँ