Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 5
________________ . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [3 कुन्द कमल गुलाब केतकी, मालती जाही जुही। कामबाण विनाश. कारण, पूजि जिनमाला गुही। // रवि सोम.॥ ____ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थकर जिनेन्द्राय: पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।। फैनी सुहारी पुवा पापर, लेऊ मोदक घेवरं / शत छिद्र आदिक विविध विंजन, क्षुधा हर बहु सुखकरं। ॥रवि सोम.॥ ___ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मणिदीप जग मग जोत तमहर, प्रभू आगे लाइये। अज्ञान नाशक निज प्रकाशक, मोह तिमिर नसाइये। // रवि सोम.॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। कृष्णा अगर घनसार मिश्रित, लोग चन्दन लेइये। ग्रहारिष्ट नाशन हेत भविजन धूप जिन पद खेइये॥ // रवि सोम.॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। बादाम पिस्ता सेव श्रीफल मोच नीबूं सद् फलं। चौबीस श्रीजिनराज पूजत, मनोवांछित शुभफलं॥ // रवि सोम / / ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थक जिनेन्द्राव पंचकल्याणक प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा।

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