Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ [35 - नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जय जय छाया सुत परिहरन, मनसुख समुद्र जु गहिये शरन॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय अर्घ निर्व. स्वाहा। - धत्ता छन्द भव जन सुखदाई होउ सहाई, मन वच काया गावत हों। सब दूषण जाई पाप नसाई, नेम सहाई छावत हों। // इत्याशीर्वादः // . केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लि पार्श्वनाथ पूजा . दोहा . केतु आय गोचर विषै, करे इष्टकी हान। मल्लि पार्श्व जिन पूजिये, मन वांछित सुख खान॥ अडिल्ल छन्द मल्लि पार्श्व जिन देव सेव, बहु कीजिये। भक्ति भाव वसु द्रव्य शुद्ध कर लीजिये। आह्वाननं कर तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः करौ। मम सन्निधि कर पूज हर्ष हियमें धरौ॥ ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट्, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्।

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