Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
View full book text
________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [ 37 मणि दीपक धूप भराय, चंद्रकली बाती। जगज्योति जहां लहकाय, मोहतिमिर घाती॥ मैं पूजों.॥ __ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। कृष्णागरु चंदन लाय, धूप दहन खेइ। मोदित सुरगण है जाय, रूचि सेती लेई॥ मैं पूजों.॥ . ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। बहु चोच मोच बादाम, श्रीफल फल देई। अमृत फल सुख बहु धाम लीजे मन लेई॥ मैं पूजों.॥ ___ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा।। जल चन्दन सुमन सु लेय तन्दुल अंगहारी। चरु दीप धूप फल लेई, अर्घ करूं भारी॥ मैं पूजों.॥ - ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अडिल्ल छन्द . . लै वसु द्रव्य विशेष सु मंगल गायके। गीत नृत्य करवाय जु तुर बजायके // . मनमें हर्ष बढ़ाय, अर्घ पूरण करौं। केतु दोषको मेंट पाप सब परिहरौं। ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय महाअर्घ निर्वपामी स्वाहा।

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52