Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 43
________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [41 हेम पुष्पक नलिन भूपदि, मालती रक्तक जया। रुक्मको भरथार चरचों, भूरिद्दढदर्पक गया॥ जे धुनि.॥ ___ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय पुष्पं निर्वपामीति.। फेनी गिदोडा आज्य पूरित, शर्करा रस भूरिजी। अग्र भेटत क्षुधा नासे, मिटे कलमस कूरजी॥ जे धुनि.॥ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय नैवेद्यं निर्वामीति.। रत्न वर घनसार वाती, जोय सर्पिस लायके। ज्ञान ज्योति प्रकाश कारण, पुंज सन्मुख आपके।जे धुनि.॥ ___ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय दीपं निर्वपामीति.। संकोच जायक कृमिजपिण्डक, तनुज मोचा चंदनं। इन आदि दशधा, धूपशुष्मा, अष्टकर्महुताशनं॥ जे धुनि.॥ ___ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय धूपं निर्वपामीति.। फलपूर त्रिपुटा चन्द्रबाला लागली जमीरजी। भर थार तुमढिंग धारही द्यो धरा अष्टम धीरजी॥ जे धुनि.॥ ___ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय फलं निर्वपामीति.। कमल मलयज अक्ष सुमनस, चरु दीप सुगन्धजी। फल आदि द्रव्य पूजों, कटेंगे वसु फन्दजी॥ जे धुनि.. ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय अर्घ निर्वपामीति.। घत्ता छन्द जय गुण गण मंडित त्रिभुवन सुन्दर, जजत पुरंदर धर्मधरा। सोमोद्भवतीरा, ध्यान गहीरा, विधि वसु चूरा मुक्तिवरा॥

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