Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जवग्रह अरिष्ट निवारक विधान हकीम हजारीलाल कृत नर्मदा नदी तट सिद्ध जिनपूजा ब्र. पं. बनारसीदास उर्फदास कृत सत्यपूजा तथा नवग्रह शांति स्तोत्र व जाप्य सहित -: संग्रहकर्ता :श्री बालमुकुन्द दिगम्बरदास जैन सिहौर छावनी -: प्राप्तिस्थान :दिगम्बर जैन पुस्तकालय खपाटिया चकला, गांधीचौक, सूरत-३ मूल्य : 15-00 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमावृत्ति की प्रस्तावना प्रिय पाठक! आजकल प्रायः देखने में आता है कि लोग मिथ्यात्व का अधिक सेवन करते हैं। ज्योतिषियों को शनि आदिकी पीड़ा दूर कराने के लिए (जूठे विश्वास से) दान देना, पीपल आदि वृक्षों को पानी देना, उनकी परिक्रमा करना इन बातों को देखकर लोगों को मिथ्यात्व से छुडाने और जैन धर्मानुकूल उनके आचरण कराने को मैंने इस विधान को छपाने का साहस किया है। आशा है कि इससे सर्व भाई लाभ उठावेंगे, यदि केवल शनि आदि की शांति करना हो तो, इनमें से केवल एक ग्रह की ही पूजा करके पोषध (एकाशन) करें और अनादि सिद्ध मन्त्र की जाप रोज देवें तो निःसंदेह इनके ग्रह की चाल के बतलाये हुए अशुभ कर्मका नाश होगा, क्योंकि जीवों के कर्म की चाल और ग्रहादिक की चाल एक समान है। ग्रह किसी को दुःख नहीं देते, किन्तु जीवों को उनके अशुभ कर्म के आगमन की सूचना देकर उपचार करते हैं। इसलिए भाईयों को मिथ्यात्व का त्याग करना चाहिए, क्योंकि इसके समान इस जीवका अहित कर्ता संसार में दूसरा कोई नहीं है। कविवर मनसुखसागरजी (इस विधान के रचयिता) का हमको कुछ भी परिचय न मिल सका। बालमुकुंदजी दिगम्बरदास जैन, सिहौर छावनी वीर संवत 2446 चैत्र सुदी-३ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ नमः सिद्धेभ्यः नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान श्लोक प्रणम्याद्यन्ततीर्थेशं धर्मतीर्थपवर्तकं / . भव्यविघ्नोपशांत्यर्थ, ग्रहाा वर्ण्यते मया॥ मार्तंडे न्दुकुजसोम्य-सूरसूर्यकृतांतकाः। राहुश्च केतुसंयुक्तो, ग्रहशान्तिकरा नव॥ दोहा आदि अन्त जिनवर नमो, धर्म प्रकाशन हार। भव्य विघ्न उपशान्तको, ग्रहपूजा चित्त धार // काल दोष परभावसौं विकलप छूडे नाहिं। जिन पूजामें ग्रहनकी, पूजा मिथ्या नाहिं // इस ही जम्बूद्वीपमें, रवि-शशि मिथुन प्रमान। ग्रह नक्षत्र तारा सहित, ज्योतिष चक्र प्रमान // तिनहीके अनुसार सौं कर्म चक की चाल। सुख दुख जाने जीवको, जिन वच नेत्र विशाल॥ ज्ञान प्रश्न-व्याकर्णमें, प्रश्न अंग है आठ। भद्रबाहु मुख जनित जो, सुनत कियो मुख पाठ॥ अवधि धार मुनिराजजी, कहै पूर्व कृत कर्म। उनके वच अनुसार सौं, हरे हृदयको भर्म // Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान - "समुच्चय पूजा दोहा जन्द्र कुज सोम गुरु शुक्र शनिश्वर राहु। . केतु ग्रहारिष्ट नाशने, श्री जिन पूज रचाहु॥ ॐ ह्रौं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक चतुर्विंशति जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / - ___ अष्टक (गीतीका छन्द) क्षीर सिन्धु समान उजवल, नीर निर्मल लीजिये। चौवीस श्री जिनराज आगे, धार त्रय शुभ दीजिये। रवि सोम भूमज सौम्य गुरु कवि, शनि नमो पूतकेतवै। पूजिये चौंवीस जिन ग्रहारिष्ट नाशन हेतवै॥ ___ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विशति तीर्थकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्रामाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।। श्रीखण्ड कुम कुम हिम सुमिश्रित, धिसौं मनकरि चावसौं। चौवीस श्री जिनराज अघहर, चरण चरचों भावसौं। // रवि सोम.॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत अखण्डित सालि तन्दुल, पूंज मुक्ताफलसमं। चौवीस श्री जिनराज पूजन, नाम है नवग्रह भ्रमं॥ .. . ॥रवि सोम.॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [3 कुन्द कमल गुलाब केतकी, मालती जाही जुही। कामबाण विनाश. कारण, पूजि जिनमाला गुही। // रवि सोम.॥ ____ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थकर जिनेन्द्राय: पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।। फैनी सुहारी पुवा पापर, लेऊ मोदक घेवरं / शत छिद्र आदिक विविध विंजन, क्षुधा हर बहु सुखकरं। ॥रवि सोम.॥ ___ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मणिदीप जग मग जोत तमहर, प्रभू आगे लाइये। अज्ञान नाशक निज प्रकाशक, मोह तिमिर नसाइये। // रवि सोम.॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। कृष्णा अगर घनसार मिश्रित, लोग चन्दन लेइये। ग्रहारिष्ट नाशन हेत भविजन धूप जिन पद खेइये॥ // रवि सोम.॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। बादाम पिस्ता सेव श्रीफल मोच नीबूं सद् फलं। चौबीस श्रीजिनराज पूजत, मनोवांछित शुभफलं॥ // रवि सोम / / ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थक जिनेन्द्राव पंचकल्याणक प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जल गंध सुमन अखण्ड तन्दुल, चरु सुदीप सुधूपकं / फल द्रव्य दुध दही 'सुमिश्रित, अर्घ देय अनूपकं // // रवि सोम.॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (दोहा) श्रीजिनवर पूजा किये, ग्रह अरिष्ट मिट जाय। पंच ज्योतिषी देव, मिल सेवें प्रभु पाय॥ पद्धडी छन्द जय 2 जिन आदिमहन्त देव, जय अजित जिनेश्वर करहिं सेव। जय 2 संभव संभव निवार, जय२ अभिनन्दन जगत तार॥ जय सुमति२ दायक विशेष, जय पद्मप्रभु लख.पदम लेष। जयर सुपार्स हर कर्म फास, जयर चन्दप्रभु सुख निवास॥ जय पुष्पदंत कर कर्म अन्त, जय शीतल जिन शीतल करंत। जय श्रेय करन श्रेयान्स दव, जय वासुपूज्य पूजत सुमेव॥ जय विमलर कर जगत जीव, जयर अनन्तसुख अति सदीव। जय धर्मधुरन्धर धर्मनाथ, जय शांति जिनेश्वर मुक्ति साथ॥ जय कुन्थनाथ शिव-सुखनिधान, जय अरहजिनेश्वर मुक्तिखान। जय मल्लिनाथ पद पद्म भास, जय मुनिसुव्रत सुव्रत प्रकाश॥ जय२ नमि देव दयाल सन्त, जय नेमनाथ तसुगुण अनन्त। जय पारस प्रभु संकट निवार, जय वर्धमान आनन्दकार॥ नवग्रह अनिष्ट जब होय आय, तब पूजै श्रीजिनदेव पाय। मन वच तन मन सुखसिंधु होय, ग्रहशांति रीत यह कहीजोय॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय महाघ निर्वपामीति स्वाहा। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान दोहा . चौवीसौं जिनदेव प्रभु, ग्रह सम्बन्ध विचार। पुनि पूजों प्रत्येक तुम, जो पाऊं सुख सार। . इत्याशीर्वादः। सूर्यग्रह अरिष्टनिवारक पद्मप्रभु पूजा सोरठा-पूजों पदम जिनेन्द्र, गोचर लग्न विषे यदा। सूर्य करे दुख दंद, दुख होवे सब जीवको॥ _ अडिल्ल छन्द पंचकल्याणक सहित, ज्ञान पंचम लसैं। समोसरन सुख साध, मुक्तिमांहि वसैं॥ आह्वानन कर तिष्ठ सन्निधी कीजिये। ... सूरज ग्रह होय शांत, जगत सुख लीजिये। ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रोपद्मप्रभु जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं / परिपुष्पांजलि क्षिपेत् / अथाष्टक (छन्द त्रिभंगी) सोनेकी झारी सब सुखकारी, क्षीरोदधि जल भर लीजे। भव ताप मिटाई तृषा नसाई, धारा जिन चरनन दीजे॥ पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कुंजत हैं। दिनकर दुख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूजत हैं। ____ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान मलियागिरि चन्दन दाह निकंदन, जिनपद वंदन सुखदाई। कुमकुम जुत लीजे अरचन कीजे, ताप हरीजे दुखदाई॥ // पद्मप्रभु, स्वामी॥ ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय चन्दनं निर्वामीति स्वाहा। तन्दुल गुणमंडित सुर भवि मंडित, पूजत पंडित हितकारी। अक्षय पद पावों अछत चढ़ावो गावो गुण शिव सुखकारी॥ - ॥पद्मप्रभु स्वामी॥ ___ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। मचकुन्द मंगावे कमल चढावे, बकुल बेल दग चित्त हारी। मंदर ले आवो मदन नसावो, शिवसुख पावो हितकारी॥ // पद्मप्रभु स्वामी॥ ___ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्तायं पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। गौ धृत ले धरिये, खाजे करिये, भरिये हाटक मय थारी। विंजन बहु लीजे पूजा कीजे, दोष क्षुधादिक अघहारी॥ // पद्मप्रभु स्वामी॥ ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मणि दीपक लीजें घीव भरीजे, कीजे धनसारक बाती। जगजोत जगावे जगमग जगमग, मोहि तिमिरको है घाती॥ // पद्मप्रभु स्वामी॥ ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [7 कालगुरु धूप अधिक अनूपं, निर्मल रुपं घनसारं / खेवो प्रभु आगे पातक भागे, जागे सुख दुख सब हरनं॥ // पद्मप्रभु स्वामी॥ प्राप्ताय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीफल ले आओ सेव चढाओं, अन्य अमर फल अविकारं। वांछित फल पावो जिनगुण गावो, दुख दरिद्र वसु कर्महरं॥ ___ // पद्मप्रभु स्वामी॥ ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा। जल चन्दन लाया सुमन सुहाया, तन्दुल मुक्ता सम कहिये। चरु दिपक लीजे धूप सु खेजे, फल ले वसु कर्मन दहिये। // पद्मप्रभु स्वामी॥ ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पूणाघ निर्वपामीति स्वाहा।। सलिल गंध ले फूल सुगन्धित लीजिये। तन्दुल ले चरु दीप धूप खेविजिये॥ कमल मोदको दोष तुरंत ही धूजिये। पद्म प्रभु जिनराज सुसन्मुख हूजिये। ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पूणा निर्वपामीति स्वाहा। . जयमाला जै जै सुखकारी, सबदुखहारी, मारी रोगादिक हरन। इन्द्रादिक आवे, प्रभु गुण गावे, मंदिर गिर मंजन करणं॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . .. 8] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान इत्यादिक साजै दुंदुभि बाजै, तीन लोक सेवत चरणं। पद्मप्रभु पूजक पानत धुजत भव भव मांगत शरणं॥ जय पद्मप्रभु पूजा कराय, सूरज ग्रह दूषण तुरत जाय। नौ योजन समवसरण बखान, घण्टा झालर सहित वितान॥ शतइन्द्र नमत तिस चरन आय, दशशत गणधर शोभा धराय। वाणी घनधोर जु घटा जोर,धन शब्द सुनत भवि नचै मोर॥ भामण्डल आभा लसत भूर, चन्द्रादिक कोट कला जु सूर। तहां वृक्ष अशोक महां उतंग, सब जीवन शोक हरे अभंग॥ सुमनादिक सुर वर्षा कराय, वे दाग चंवर प्रभुपै ढराय। सिंहासन तीन त्रिलोक इश, त्रय छत्र फिरे नग जड़त शीश॥ मत भई आवत मकरन्द सार, त्रय धुलि सार सुन्दर अपार। कल्याणक पांचों सुख निधान, पंचम गति दाता है सुजान। साढ़े बारह कोड़ी जु सार, बाजै दिन वेद बजे अपार। धरणेन्द्र नरेन्द्र सुरेन्द्र ईस, त्रिलोक नमत कर धरि ऋषीस॥ सुर मुक्त रमा वर नमत बार, दोऊ हाथ जोड कर बार बार। याके पद नमत आनंद होय, दूति आगे दिनकर छिपत जाय॥ मन शुद्ध समुद्र हृदय विचार, सुख दाता सब जनको अपार / मन वच तन कर पूजा निहार, कीजे सुखदायक जगत सार॥ ___ॐ ह्रीं सूर्यग्रह अरिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। सब जन हितकारी,सुख अति भारी, मारी रोगादिक हरणं। पापादिक टारै ग्रह निरवारै, भव्य जीव सब सुख करणं॥ * इति आशीर्वादः परिपुष्पांजलि क्षिपेत् / Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान चन्द्र अरिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभु पूजा निश पति पीड़ा, ठान गोचर लग्न विषै परे। वसु विधि चतुर सुजान, चन्द्रप्रभु पूजा करे॥ ." चन्द्रपुरीके बीच चन्द्रप्रभु अवतरै। . लक्षण सोहे चन्द्र सबनके मन हरैं॥ भव्य जीव सुखकाज द्रव्य ले धरत हैं। सोम दोषके हेत थापना करत हैं। ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभु जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं परिपुष्पांजलि क्षिपेत् / अथाष्टक. कंचन झारी जडत जडात, क्षीरोदक भर जिनहिं चढ़ात। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो॥ चन्द्रप्रभु पूजौं मन लाय, सोम दोष तातें मिट जाय। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो। . ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा। मलयागिर केशर घनसार, चरचत जिन भव ताप निवार। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।चन्द्रप्रभु.॥ . अथाष्टक प्राप्ताय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : 10] नवग्रह अरष्टनिवारक विधान खण्डरहित अक्षत शशिरुप, पूंज चढाय होय शिवभूप। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो॥चन्द्रप्रभु.॥ 1 ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। कमल कुन्द कमलिनी अभंग, कल्पतरु जस हरै अमंग। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।चन्द्रप्रभु.॥ ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। धेवर बावर मोदक लेऊ, दोष क्षुधाहर थार भरेउ। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।चन्द्रप्रभु.॥ ... ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्रासाय नैवेद्यं निवंपामीति स्वाहा। . मणिमय दीपक घृत जु भरेउ, बाती वरत तिमिर जु हरेउ। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।चन्द्रप्रभु.॥ _____ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। / कालागुरुकी कनी खिवार्य,वसु विधि कर्म जु तुरत नसाय। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।चन्द्रप्रभु.॥ ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक, प्राप्ताय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। .. श्रीफल अम्ब सदा फल लेउ, चोच मोच अमृत फल देउ। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।।चन्द्रप्रभु.॥ ... ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान . [11 जल गन्ध पुष्पं शालि नैवेद्य, दीप धूप फल ले अनिवेद्य। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।चन्द्रप्रभु.॥ . ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्रासाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जल चन्दन बहु फल जु तन्दुल लीजिये। . दुग्ध शर्करा सहित सु विजन कीजिये। दीप धूप फल अर्घ बनाय धरीजिये। पूजों सोम जिनेन्द्र सुदुःख हरीजिये। ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला चंद्रप्रभु चरणं सब सुख भरणं करणं आतम हिल अतुलं। दर्द जु हरणं भव 'जल तरणं, मरन हरं शुभकर विपुलं॥ भव्य मन हृदय मिथ्यात तम नाशकम्। केवलज्ञान जग-सूर्य प्रतिभासकम्॥ चंद्रप्रभु चरण मन हरण सब सुखकरं। शाकिनी भूत ग्रह सोम सब दुखहरं॥ वर्धनं चंद्रमा धर्म जलानिधि महा। जगत सुखकार शिव-माग प्रभुने महा॥ चंद्रप्रभु.॥ ज्ञात गम्भीर अति धीर वर वीर हैं। तीनहूँ लोक सब जगतके मीर हैं॥ विकट कंदर्पको दर्प छिनमें हरा। कर्म वसु पाय सब आप ही तै झरा॥ चंद्रप्रभु.॥ सोमपुर नगर में जन्म प्रभुने लहा। क्रोध छल लोभ मद मान माया दहा॥ चंद्रप्रभु, व महा / Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12] . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान देह जिनराजकी अधिक शोभा धरे। * स्पटिकमणि कांति तांहि देख लज्जा करे॥चंद्रप्रभु.॥ आठ अरु एक हजार लक्षण महा। दाहिने चरणको निशपति गह रहा॥ चंद्रप्रभु.॥ कहत 'मनसुख' श्री चन्द्रप्रभु पूजिये। सोम दुख नाशके जगत भय धूजिये॥ चंद्रप्रभु.॥ _____ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। __ पाप तापके नाशको, धर्मामृत रस कूप। चंद्रप्रभु जिन पूजिये होय जो आनंद भूप॥ इत्याशीर्वाद। मंगल अरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्यकी पूजा वासुपूज्य जिन चरण युग भूसुत दोष पलाय। तातें भवि पूजा करो, मनमें अति हरषाय॥ - वासुपूज्यके जन्म समय हरषायके। आये गज ले साज इन्द्र सुख पायके॥ लै मंदिर गिर जाय जु न्हवन करायके। सोंपे माता जाय जो नाम धरायके॥ - ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिकारक श्रीवासुपूज्य जिन! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वानन, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं। कनक झारी अधिक उत्तम रतन जड़ित सु लीजिये। पद्म द्रहको जल सुगंधित कर धार चरनन दीजिये। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [23 भूतनय दूषण दूर नाश जु सकल आरत टारके। ... श्री वासुपूज्य जिन चरन पूजो हर्ष उरमें धारके॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारकं श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीखण्ड मलय जु महा शीतल सुरभ चंदन विस धरौं। जिन चरन चरचों भविक हित सों पाप ताप सबै हरौं। . ॥भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत अखण्डित सुरभि मंडित थारी भर कर मैं गहों। . अक्षत सु पुंज दिवाय जिन पद अखय पदमें जो लहों। // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। कमल कुन्द गुलाब चम्पा, पारिजातक अतिघने। पहूँच पूजत चरन प्रभुके कुसुम शर तब हो हने॥ . // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।। गौ घृत सद्य मंगाय भविजन दुग्ध मिश्रित शर्करी। चरु चारु लेकर जजों जिनपद, क्षुधा वेदन सब हुरी॥ // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। य. // Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 ] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान मणि जडित कंचन दीप सुन्दर धृत तामें भरों। उद्योत कर जिन चरण आगे, हृदय मिथ्यातम हरों॥ // भूतनय.॥ . ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। काला अगर धन सार मिश्रित देव फूल सुहावने। खेवत धुंआ सो सुरंग मोदित, करत वसु कर्म हने॥ // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताव धूपं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीफल अनार जो आम नींबू, चोच मोच सुधा फलं। जिन चरन चरचत फलन सेती, मोक्षफल दाता रलं॥ // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक. प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा। जल गन्ध अक्षत पुष्प विंजन, दीप धूप फलोत्तम। जिनराज अर्घ चढाय भविजन, लेऊ मुक्ति सुखोत्तमं॥ . // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। - अडिल्ल सुरभित जल श्रीखण्ड कुसुम तन्दुल भले। विंजन दीपक धूप सदा फल सों रले॥ . Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [15 वासुपूज्य जिन चरण अर्घ शुभ दीजिए। मंगल ग्रह दुख टार सो मंगल लीजिए। ____ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला मंगल ग्रहं हरनं मंगल करनं, सुखकर शिव-रमणी वरनं। आतम हित करनं भवजल तरनं, वासुपूज्य सेवत चरनं॥ पद्धडी छन्द इन्द्र नरेन्द्र खगेन्द्र जु देव, आय करें जिनवरकी सेव। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो।टेक॥ विजया जननी मन हर्षाय जनक जु वासुपूज्य सुखदाय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ शुभ लक्षण कर लक्षितकाय, चम्पापुर जनमें जिनराय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ महिषा अंक चरनमें परो, देखत सबका संशय हरो। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ फाल्गुन असि जो चौदश जान हो वैराग्य सु धरियो ध्यान। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ घात घातिया केवल पाय, जैनधर्म जगमें प्रगटाय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ षट शत एक मुनीश्वर भयो, गिरिमन्दार शिव लहि गयो। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ मंगल हेतु जजों जिनराय, मंगल ग्रह दूषण मिट जाय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान - धत्ता छन्द पूजन प्रभुकी कीजे, दोष हरीजे, छीजे पातक जन्म जरा। सुख होय अविकारी ग्रहदुखहारी, भवजल भारी नीरतरा॥ - ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय महाअर्घ निर्वपामीति स्वाहा। इतिश्री भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्यजिनपूजन संपूर्ण। बुधग्रह अरिष्ट निवारक अष्ट जिनपूजा सौम्य ग्रह पीड़ा करै, पूजों आठ जिनेश। आठ गुण जिनमें लसें, नावत शीश सुरेश॥ विमलनाथ जिन नमों, नमो जु अनन्तनाथ जिन। धर्मनाथ जिन बंद बंद हौं, शांति शांति जिन॥ कुन्थु अरह जिन सुमरि, सुमरि पुनि वर्धमान जिन। इन आठों जिन जजों, भजों सुख करन चरन तिन॥ बुध महाग्रहं अशुभता धरत करत दुख जोर जब। आह्वाननं कर तिष्ठ तिष्ठ, सन्निधि करहु तव॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिन अत्र अवतर 2 संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं, परिपुष्पांजलि क्षिपेत् / . अथाष्टक __ (गीतीका छन्द) . हेम झारी जड़ित मन जल भरों क्षीरोदक तनं। धार देत जिनराज आगे, पाप ताप जु नाशनं॥ . Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [17 विमलनाथ अनंतनाथ, सु धर्मनाथ जु शांत ये। कुन्थ अरह जु नमिय जिन महावीर आठों जिन जजे॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा। सुरभि सुमरत लेऊं चंदन, घिसों कुमकुम संग ही। जिन चरन चरचत मिटे ग्रीषम, मोह ताप जु भाग ही॥ ॥विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत अखंड उभय कोट समान शुभ जू अति घने। ले कनक थार भराय भविजन, पुज देत सुहावने // ॥विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। मन्दार माली मालती मच कुन्द मरुवो मोतिया। कमल कुन्द कुसुम करना, काम बाण जु घातिया॥ // विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। घृत शुद्ध मिश्रित शर्करामृत, करहु विंजन भावसों। ग्रह शांति के होत जिनके, चरन चरचों चावसों॥ ॥विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मणि जडित हाटक दीप सुन्दर खातका घनसार है। सर्पि सहित शिखा प्रकाशित, आरती तमहार है। ॥विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो दीपं निर्बपामीति स्वाहा।. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9. नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान लोभा अगर कपूर चंदन, लौंग चूरन लेइये। चिन्हि धूम विवर्जितम जिन चरन आगे खेइये // ॥विमल.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा। कल्पपादक जिन श्रीफल, फल समूह चढ़ाईये। भक्ति भाव बढ़ाय करके, सरल श्रीफल लीजिये। ॥विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा। शुभ सलिल चंदन सुमन, अक्षत क्षुधा हर चरु लीजिये। मणि दीप धूपक फल सहित, वसु द्रव्य अर्घ करीजिये। .... // विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जल चंदनं आदिक दरब, पूजों वसु जिनराय। सोम्य ग्रह दूषण मिटे, पूरन अर्घ चढ़ाय॥ // विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो महाअर्घ निर्व. स्वाहा / ... . .जयमाला विमलनाथ जिन नमों, नमों जु अनन्तनाथ जिन। धर्मनाथ पुनि नमों, नमों शांति कर्ता तिन॥ कुन्थुनाथ पद वन्द, वन्दन हों अरहनाथ जिन। नमिय प्रणमि जिन पाय, पाय जिन वर्धमान जिमि॥ ..ये आठों जिनरायको, हाथजोड़ शिर धरत हों। सोम तनुज दुःख हरनको, मंगल आरति करत हों। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारके विधान. [19 पद्धड़ी छन्द जय विमल विमल आतम प्रकाश। . षट् द्रव्य चराचर लोक वास। जय जय अनन्त गुण हैं अनन्त। .. सुर नर जस गावत लहे न अन्त॥ जय धर्म धुरन्धर धर्मनाथ। . जग जीव उधारन मुक्ति साथ॥ जय शांतिनाथ जग शांति करन। ___. भव जीवनके दुःख दारिद्र हरन॥ जय कुन्थु जिन कुन्थादि जीव। प्रतिपालन कर सुख दे अतीव॥ जय अरह जिनेश्वर अष्ट कर्म। रिपु नाम लियो शिव रमन शर्म॥ जय नमिय नमिय सुर वर खगेश। इन्द्रादि चन्द्र थुति करत शेष॥ जय वर्धमान जग वर्धमान। - उपदेश देय लहि मुक्ति थान॥ शशि सुत अरिष्ट सब दूर जाय। . . भव पूजे. अष्ट जिनेन्द्र पाय॥ मन वच तनकर जुग जोड़ हाथ। मनसिन्धु जलधि तव नवत माथ॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो अर्घ निर्व.। ये आठ जिनेश्वर नमत सुरेश्वर, भव्य जीव मंगल करनं। मन वांछित पूरे पातक चुरे, जन्म मरण सागर तरनं। इत्याशीर्वादः। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 ] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान गुरु अरिष्टनिवारक श्री अष्ट जिनपूजा मन वच काया शुद्ध कर, पूजों आठ जिनेश। गुरु अरिष्ट सब नाश हो, उपजे सुख विशेष॥ छप्पय ऋषभदेव जिनराज, अजित जिन संभवस्वामी। . अभिनन्दन जिन सुमति, सुपारस शीतल स्वामी॥ श्री श्रेयांस जिनदेव, सेव सब करत सुरासुर। - मनवांछित दातार, मारजित तीन लोक गुरु // संवोषट् ठः ठः तिष्ठ सुसन्निधि हूजिये। गुरु अरिष्टके नाशको, आठ जिनेश्वर पूजिये। ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनः अत्र अवतरर संवौषट् / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भवर वषट्। .. .. .... अथाष्टक . . उज्वल जल लीजे, मन शुचि कीजे हाटकमय भृङ्गार भरं। जिन धार दिवाई, तृषा नसाई, भवजल निधि वे पार परं॥ ऋषभ अजित सम्भव, अभिनंदन, सुमति सुपारस नाथ वरं। शीतलनाथ श्रेयांस जिनेश्वर, पूजत सुरगुरु दोष हरं॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा। मलयागिर चंदन दाह निकन्दन, कुमकुम शुभ ले घनसारं। चरचों जिन चरनं, भव तप हरनं, मनवांछित सब सुख निकरं। ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [21 सरल शाली कृष्ण जीरक, वसुमती जो मन हरं। उभय कोटक, अरु अखण्डित, अखय गुण शिवपद धरं॥ ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। चम्पक चमेली, करन केतकी, मालती मरुवो मोल सरं। कमल कुमुद गुलाब कुन्दजु, सरन जुही शिव-तिय वरं॥ . . . ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। घेवरहि सु बावर पुवा पुरेयै, मोदक फैनी घेवरं / सुरहि घृत पय शर्कराजुत, विविध चरु क्षुध क्षयकरं॥ ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मणिकर जड़ित सुवर्ण थाल ले,कदली सुत घृत मांहि तरं। दीपक उद्योतं, तम क्षय होतं, निज गुण लखि भार भरं॥ ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन अगर, लोंग सुतरंग, विविध द्रव्य ले सुरभितरं। खेवत जिन आगे, पातक भागे, धूवा मिस वसु कर्मजरं॥ . ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा। बादाम सुपारी श्रीफल भारी, चोच मोच कमरख सु वरं। लैके फल नाना, शिव सुख थाना, जिनपद पूजत देत तुरं॥ ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो .फलं निर्वपामीति स्वाहा। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 221 नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जल चंदन फूलं तन्दुल तूलं, चरु दीपक लै धूप फलं। वसु विधिसे अरचे,वसुविधि विरचै,कीजे अविचल मुक्तिधरं॥ ऋषभ. अजित॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अडिल्ल छन्द मन वच काया शद्ध पवित्र जु हूजिये। लेकर आठों दरव आठ जिन पूजिये॥ मंगलीक वसु वस्तु पूर्ण सब लीजिये। पूरन अर्घ मिलाय आरती कीजिये॥ . ॐ ह्रीं श्री गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो महाघ निर्वपामीति स्वाहा।। जयमाला . सुर गुरु दुख नाशन, कमलपत्रासन, वसुविधि वसुजिन पूजकरं। भव भव अघहरनं, सबसुखकरनं, भव्यजीव शिवधामधरं॥ पद्धड़ी छन्द जय धर्म-धुरंधर ऋषभ धार जय मुक्ति कामनी कन्त सॉर। जय अजिंतकर्म अरि प्रबल जान,जय जीतलियो सगुणनिधान जय सम्भव सम्भव दम्भ छेद,जय मुक्ति रमा लइयो अखेद। जय अभिनन्दन आनंदकार, जय जय जन सुखकर्ता अपार॥ जय सुमति देव देवाधिदेव, जय शुभमतिजुत सुरकरहि सेव। जयर सुपार्श्व सुख परमज्ञान, जय लोकालोक प्रकाशमान॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [ 23 जय जन्म-जरा मृत वन्हि हर्न जय तिनका हमको नित्य शर्ण। जय श्रेयकरन श्रेयांसनाथ, जय श्रेयसपद दय मुक्ति साथ॥ जयर गुणगरिमा जग प्रधान जय भव्य कमल परकाश भान। जय मनसुखसागर नमत शीश,जय सुरगुरु दोषन मेट ईश॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्ट निवारक श्री अष्ट जिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। इत्याशीर्वादः / दोहा आठ जिनेश्वर पूजते, आठ कर्म दुख जाय। अष्ट सिद्धि नव निधि लहैं, सुरगुरु होय सहाय॥ शक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त पूजा पुष्पदन्त जिनरायको, भवि पूजौं मन लाय। मन वच काया शुद्धसों, कवि अरिष्ट मिट जाय॥ .. अडिल्ल छन्द गोचरमें ग्रह शुक्र आय जब. दुख करै। पुष्पदन्त जिन पूज सकल पातक हरै॥ आह्वानन कर तिष्ठ सन्निधि हजिये। आठ द्रव्य ले शुद्ध भावसों पूजिये॥ ॐ ह्रीं शुक्रग्रह अरिष्टनिवारक पुष्पदन्त जिन अत्र अवतर अबतर संवौषट् / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भवर . वषट् सन्निधिकरणं परिपुष्पांजलि क्षिपेत् / Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान अथाष्टक (सोरठा) निर्मल शीत सुभाय, गंगाजल झारी भरौ। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा। कुम कुम लेइ घिसाय, कनक कटोरीमें धरौं। ... कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। तन्दुल अक्षत लाय भाव सहित तुष परिहरौ। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। कमल चमेली जाय, जुही कुन्द जु केवरो। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। विंजन विविध बनाय, मधुर स्वाद युत आचरों। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं॥ : ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान . [25 कंचन दीप कराय, कदलीसुत बाती करों। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं॥ ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। अगर कपूर मिलाय, लोंग धूप बहु विस्तरौं। .. कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। चोच मोच फल पाय, सरस पक्क लीजे हरों। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा। नीरादिक लै आय, अर्घ देत पातक हरो। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जल चन्दन ले फूल और अक्षत घने। दीप धूप नैवेद्य सुफल मनमोहने॥ गीत नृत्य गुण गाय अर्घ पूरण करो। पुष्पदन्त जिन पूज शुक्र दूषण हरो॥ महा अर्घ // Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 ] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जयमाला मन वच तन ध्यावो, पाप नसावो, सब सुख पावो, अघ हरणं। ग्रह दूषण जाई, हर्ष बढ़ाई, पुष्पदन्त जिनवर चरणं // पद्धड़ी छन्द जय पुष्पदन्त, जिनराज देव, सुर असुर सकल मिल करहि सेव। जय फाल्गुन सुदि नौमी बखान, सुरपति सुर गर्भकल्याण ठान॥ जय मार्गशीर्ष शशि उदय पक्ष, नौमी तिथि जगमें भये प्रत्यक्ष। जय जन्म-महोत्सव इन्द्र आय, सुर गति ले इन्द्र न्हवन कराय॥ जय वज्रवृषभ नाराच देह दश शत वसु लक्षण सुनहि गेह। जय राजनीति कर राज कीन, मगसिरसित पड़वा तप सु लीन॥ जय कार्तक सुदी दुतिया महान, लहि केवलज्ञान उद्योत भान॥ जय भव्य जीव उपदेश देय, जग जलदि उबारन सुजस लेय। जय भादों सुदी आठे प्रसिद्ध, इन शेष कर्म प्रभु भये सिद्ध॥ जय जय जगदीश्वर भये देव, भृगु तजहिं दोपहर करत सेव। जय मनवांछित तुम करत ईश, मन शुद्ध जलधि तुम नमत शीश ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। सब गुण अधिकारी, दूषण हारी, मारी रोगादिक हरनं। भृगु सुत दुख जाई, पाप मिटाई, पुष्पदन्त पूजत चरणं॥ इति आशीर्वादः / Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [27 शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिनपूजा . दोहा जन्म लग्न गोचर समय, रवि सुत पीड़ा देय। तब मुनिसुव्रत पूजिये, पातक नाश करेय॥ - अडिल्ल छन्द मुनिसुव्रत जिनराज काज निज करनको। सूर्य पुत्र ग्रह क्रूर, अरिष्ट जु हरनको। .. आह्वानन कर तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः करो। होय सन्निधि जिनराय, भव्य पूजा करो॥ ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् / - अथाष्टक (चाल कातक) .... प्राणी गन्धोदक ले सीयरो, निर्मल प्रासुक ले नीर हो। प्राणी झारी भर त्रय धार दे,जासे कर्म-कलंक मिटाय हो। व प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये। .. ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी चंदन घिस मलियागिरी, अरु कुम कुम तामें डार हो। प्राणी जिनपद चरचों भावसों,जासों जन्म जरा जर जाय हो॥ . प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये। ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28] . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान प्राणी उज्वल शशिसम लीजिये, एजी तंदुल कोट समान हो। प्राणी पांच पुज दे भावसों, अक्षय पद सुखदाय हो। प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये। ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी बेल चमेली केवडो, करनार कुमुद गुलाब हो। प्राणी केतकी दलसे पूजिये, तब कामबाण मिट जाय हो॥ प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये। ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी विंजन नाना भांतिके, एजी षट रस कर संयुक्त हो। प्राणी जिन पद पूजों भावसों,तब जाय क्षुधादिक रोग हो। प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये। ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी रतन जोत तम नासनी, कर दीपक कंचन थार हो। प्राणी जिन आरती कर भावसों, एजी भव आरत तम जायहो .प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये। ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी चंदन अगर कपूर ले सब खेवो पावक मांहि हो। प्राणी अष्ट करम जर क्षार हो, जिन पूजत सब सुख होय हो प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये। ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [ 29 प्राणी आम अनार पियूष फल, चौच मोच बादाम हो। प्राणी फलसों जिनपद पूजिये,एजी पावे शिव फलसार हो। प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये। ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी निरादिक वसु द्रव्य ले मन वच काय लगाय हो। प्राणी अष्ट कर्मका नाश है एजी अष्टमहागुण पाय हो॥. प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये॥ ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। . अडिल्ल छन्द जल चन्दन ले फूल और अक्षत घने। चरु दीपक बहु धूप महाफल सोहने॥ पूरण अर्घ बनाय जिन आगे हूजिये। . मुनिसुव्रत जिनराय भावसों पूजिये। ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक पूर्णार्धं निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (दोहा) मुनिसुव्रत सुव्रत करन, त्याग करन जगजाल। शनि ग्रह पीड़ा हरनको, पढ़ो हर्ष जयमाल॥ पद्धडी छन्द जय जय मुनिसुव्रत त्रिजगराय, शत इन्द्र आय माथा नमाय। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जय जय पद्मावती गर्भ आय, साबन वदी दुतिया हर्षदाय॥ जय जय सुमित्र घर जन्म लीन, वैशाख कृष्ण दशमी प्रवीन। जय जय दश अतिशय लसत काय, त्रयज्ञान सहित हित मित कहाय॥ जय जय तन लक्षण सहस आठ, . भवि जीवनमें थुतिकरन पाठ। जय जय सौधर्म सुरेश आय, जन्म कल्याणक करियो सु भाय॥ जय जय तप ले वैशाख मास, . सुदी दशमी कर्म कलंक नाश। जय जय वैशाख जो असित पक्ष, नौमी केवल लहि जग प्रत्यक्ष॥ जय जय रचियों तब समवसरन, सुर नर खग मुनिके चित्त हरन। जय छियालीस गुण सहित देव, शत इन्द्र आय तहां करत सेव॥ जय जय फागुन वदी द्वादशीय, . शिवनाथ वसे मुनि सिद्ध लीय। जय जय शनि पीडा हरन हेत, मनसुखसागर कर सुख निकेत॥ ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन अनर्घपद प्राप्ताय निर्वपामीति स्वाहा। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान . [31 घत्ता छन्द मुनिसुव्रत स्वामी सब जग नामी, ___ भव्य जीव बहु सुख करनं। - मन वांछित पूरै पातक चूरै, रविसुक्त पीड़ा हरनं // इति आशीर्वादः / राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमिनाथ जिनपूजा . गोचरमें जब आय पीड़ा करे, ... नेमिनाथ जिनराज तबै पूजा करे। आठ द्रव्य ले शुद्धभाव हि आनके, .. - श्याम पुष्प मन लाय भक्तिको ठानके॥ पूजों नेम जिनेश भव्य चित्त लायके, राहु देय दुख दुष्ट राशिमें आयके। कर आननं तिष्ठः तिष्ठः ठः ठः उच्चरों, होय सन्निधि शक्ति भक्त पूजा करों॥ ॐ ह्रीं राहुअरिष्टनिवारक श्रीनेमीनाथ जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं। परिपुष्पांजलि क्षिपेत् / / अष्टक (गीतीका छन्द) कनक शारी मणिजडित ले, शीत उदक भरायके। प्रभु नेम लिक चरण आगे धार दे मन लायके॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 ] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जब राहु गोचर समय दुख दे, देय दुष्ट स्वभावसों। तब नेम जिनके भावसेती, चरण पूजों चावसों॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय जलं निर्व. स्वाहा। श्रीखंड मलय मिलाय केसर, कदली सुत तामें घिसो। जिन चरण चरचत भाव धरके, पाप ताप तबै नसौं॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय चंदनं निर्व. स्वाहा। अक्षत अनुपम सालि सम्भव, कनक भाजन लेइये। जिन अग्रपूंज चढ़ाय भवि जन, एकचित्त मन देइये॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय अक्षतं निर्व. स्वाहा। कमल कुन्द गुलाब गुंजा केतकी करना भले। सुमन लेके सुमन सेती, पूजते जिन अघ टले॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय पुष्पं निर्व. स्वाहा। विंजन विविधरस जनित मनहर क्षुधादूषणको हरे। भर थार कंचन भावसेती, नेमिजिन आगे धरे॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय नैवेद्यं निर्व. स्वाहा। मणिमई दीप अनूप भरके, चन्द्र ज्योति सु जगमगे। निज हाथ लै प्रभु आरती कर, मोह तब ही भगै॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय दीपं निर्व. स्वाहा। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [.33 कृष्णागरु लोभान लेके, और द्रव्य सुगन्ध मय। जिन चरण आगे अगनी पर धर,धूप धूम सुरभि भमैं॥ . ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय धूपं निर्व. स्वाहा। अम्बा बिजोरा नारियल, श्रीफल सुपारी सेवको। फल ले मनोहर सरस मीठे, पूज ले जिनदेवको॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय फलं निर्व. स्वाहा। जल गन्ध अक्षत पुष्प सुरभित, चरु मनोहर लीजिये। दीप धूप फलौघ सुन्दर अर्घ, जिन पद दीजिये॥ // जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय अर्घ निर्व. स्वाहा। आठ द्रव्य ले सार नेम प्रभु पूजिये। राहु होय ग्रह शांति पाप सब धूजिये। मन वांछित फल पाय होय बड़भागसो। . . जो पूजे जिन देव बडे अनुरागसो॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय महाअर्थ निर्व. स्वाहा। जयमाला श्री नेम जिनेश्वर जगपरमेश्वर, जीव दया जु धुरंधरं। मैं शरणन आयो शीश नमायो, सिंधु सुत दूषण हरनं॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 341 नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान पद्धड़ी छन्द .. जय जय जिन नेम सुनेम धार, - करुणा कर जग जन जलधि तार। जय कार्तक सुदि छठमी प्रधान, .. शिवदेवी उर अवतरे आन॥ जय जय सावन सुदी छठ सुदेव, इन्द्रादि न्हवन विधि करहि सेव। जय जय यदु कुल मंडित दिनेश, सुर नर खग स्तुति करत शेष // जय जय शुचि शुक्ल उदास होय, . छठको तप कर निज आत्म जोय। जय जय निर्मल तनं निर्विकार, भामण्डल छबि शोभा अपार॥ जय जय आश्विन सुदी ज्ञान भान, .. . तिथि प्रथम प्रहर जग सुख निधान। जय जय सावन छठ शुक्ल पक्ष, सब लोकालोक कियो प्रत्यक्ष॥ लहि सुख अनन्त शिव लोक वास। ___ हो त्रिभुवन पति लोकाना थान॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [35 - नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जय जय छाया सुत परिहरन, मनसुख समुद्र जु गहिये शरन॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय अर्घ निर्व. स्वाहा। - धत्ता छन्द भव जन सुखदाई होउ सहाई, मन वच काया गावत हों। सब दूषण जाई पाप नसाई, नेम सहाई छावत हों। // इत्याशीर्वादः // . केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लि पार्श्वनाथ पूजा . दोहा . केतु आय गोचर विषै, करे इष्टकी हान। मल्लि पार्श्व जिन पूजिये, मन वांछित सुख खान॥ अडिल्ल छन्द मल्लि पार्श्व जिन देव सेव, बहु कीजिये। भक्ति भाव वसु द्रव्य शुद्ध कर लीजिये। आह्वाननं कर तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः करौ। मम सन्निधि कर पूज हर्ष हियमें धरौ॥ ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट्, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 ] . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान चाल नन्दीश्वर उत्तम गंगाजल लाय मणिमय भर झारी। जिन चरण धार दे सार, 'जन्म जरा हारो॥ मैं पूजों मल्लि जिनेश, पारस सुखकारी। ग्रह केतु अरिष्टनिवार, मनसुख हितकारी॥ ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीखण्ड मलय तरु ल्याय, कदली सुत डारी। घिस केसर चरणनि ल्याय, भव आताप हरी। मैं पूजों.॥ - ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। तन्दुल अक्षत अविकार, मुक्ता मम सोहैं। भरले हाटक मय थाल, सुर नर मन मोहैं। मैं पूजों.॥ ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। लै फूल सुगन्धित सार, अलिगुंजार करै। पद पंकज जिनहिं चढाय, काम विथा जु हरै। मैं पूजों.॥ ___ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। विंजन बहुत प्रकार, षट् रस स्वाद मई। चरु जिनवर चरण चढ़ाय कञ्चन थार लई॥ मैं पूजों.॥ ....... ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [ 37 मणि दीपक धूप भराय, चंद्रकली बाती। जगज्योति जहां लहकाय, मोहतिमिर घाती॥ मैं पूजों.॥ __ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। कृष्णागरु चंदन लाय, धूप दहन खेइ। मोदित सुरगण है जाय, रूचि सेती लेई॥ मैं पूजों.॥ . ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। बहु चोच मोच बादाम, श्रीफल फल देई। अमृत फल सुख बहु धाम लीजे मन लेई॥ मैं पूजों.॥ ___ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा।। जल चन्दन सुमन सु लेय तन्दुल अंगहारी। चरु दीप धूप फल लेई, अर्घ करूं भारी॥ मैं पूजों.॥ - ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अडिल्ल छन्द . . लै वसु द्रव्य विशेष सु मंगल गायके। गीत नृत्य करवाय जु तुर बजायके // . मनमें हर्ष बढ़ाय, अर्घ पूरण करौं। केतु दोषको मेंट पाप सब परिहरौं। ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय महाअर्घ निर्वपामी स्वाहा। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 381 नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान . जयमाला जय मल्लि जिनेसुर सेव करे सुर, पार्श्वनाथ जिन चरण नमों। मन वच तन लाई अस्तुति गाई, करौं आरती पाप गमों। पद्धड़ी छन्द जय जय त्रिभुवन पति देव देव, इन्द्रादिक सुरनर करहि सेव। जय जय निज गुण ज्ञायक महंत, गुण वर्णन करत न लहतअंत॥ जय जय परमातम गुण अरिष्ट, भव पद्धति नाशन परम इष्ट। जय जय अष्टादश दोष नाश कर दिन सम लोकालोक भास॥ जय जय वसु कर्म कलंक छीन, सम्यक्त्व आदिवसु सुगुण लीन। जय जय वसु प्रतिहारज अनूप, वसुनी शुभ भूमिके भये भूप॥ जय जय अदेह तुम देह धार, वर्णादि रहित में रूप सार। जय जय अजरामर पद प्रधान, गुण ज्ञान आलोकालोक मान॥ जय जय सुख साता बोधदर्श, निज गुण जुत परगुण नहीं पर्श। जय जय चित्त शुद्ध समुद्र सार, कर जोर नमों हों बार बार // ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्थ निर्वपामीति स्वाहा। इत्याशीर्वादः / Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान .. नवग्रह-शांति स्तोत्रम् जगद्गुरुं नमस्कृत्य, श्रुत्वा सद्गुरुभाषितम्। ग्रहशांति प्रवक्ष्यामि, लोकानां सुखहेतवे॥ जिनेन्द्राः खेचरा ज्ञेया, पूजनीया विधिक्रमात्। पुष्पैर्विलेपनेंधूपैनैवेद्यैस्तुष्टिहेतवे॥ पद्मप्रभस्य मार्तडश्चन्द्रप्रभस्य च। वासुपूज्यस्य भूपुत्रो बुधश्चाष्टजिनेशिनां॥ विमलानन्तधर्मेश, शांतिकुन्थुनमेस्तथा। वर्धमानजिनेन्द्रस्य पादपद्मं बुधो नमेत्। ऋषभाजितसुपार्थाः साभिनन्दनशीतलौ। सुमतिः सम्भवस्वामी, श्रेयांसेषु बृहस्पतिः॥ सुविधिः कथितः शुक्रे सुव्रतश्च शनिश्वरे। नेमनाथो भवेद्राहोः केतुः श्रीमल्लिपार्श्वयोः॥ जन्मलग्नं च राशिं च यदि पीड्यति खेचराः। तदा संपूजयेत् धीमान् खेचरान् सह तान् जिनान्॥ आदित्यसोममंगल बुधगुरुशुक्रे शनिः। (?) राहुकेतु मेरवाग्रे या, जिनपूजाविधायकः॥ जिनान नमोग्न तयोहिं, ग्रहाणां तुष्टिहेतवें। नमस्कारशतं भक्तया, जपे हट्टोत्तरं शतं॥ भद्रबाहुगुरुर्वाग्मी, पंचमः श्रुतकेवली। विद्याप्रसादतः पूर्व ग्रहाशांतिविधिः कृता॥ यः पठेत् प्रातरुत्थाय, शुचिर्भूत्वा समाहितः। विपत्तितो भवे छांति, क्षेमं तस्य पदे पदे॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहुँचे वसू विमट, सिद्धजिना अनमम सहि नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान - हकीम हजारीलालजी कृत-- श्री नर्मदातटस्थ सिद्ध जिनपूजा दोहा स्त्रोत स्वति सोमोद्भवा, युत्म कूल ऋषि जेह। पहुँचे वसू विश्वंभरा, त्रिविधि थाप धर नेह॥ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतट, सिद्धजिना अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं। अथाष्टक (छन्द गीतीका) क्षीराब्धितें ले सर्वतोमुख, पात्र अष्टापद भरूं। त्रसा आमय हरण वारण, प्रभु चरण अग्र धरूं॥ जे धुनिमें कल कन्यका तट, भये सिद्ध अनंतजू। मैं पूजहुँ मन वचन तनकर, अष्ट कर्म निकंद जू॥ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय जलं निर्वपामीति.। भद्र श्री हिम चालुका विस भर कटोरी गन्धसों। तुम पद अ! शुद्ध मनसे, भवाताप निकंदसो॥जे धुनि.॥ ___ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय चंदनं निर्वपामीति.। खण्डवर्जित विमल तंदुल,शुक्ति उसर समान हैं। जिनपादजों भावसों मैं अखयपदचितथान हैं। जे धुनि.॥ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय अक्षतं निर्वपामीति.। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [41 हेम पुष्पक नलिन भूपदि, मालती रक्तक जया। रुक्मको भरथार चरचों, भूरिद्दढदर्पक गया॥ जे धुनि.॥ ___ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय पुष्पं निर्वपामीति.। फेनी गिदोडा आज्य पूरित, शर्करा रस भूरिजी। अग्र भेटत क्षुधा नासे, मिटे कलमस कूरजी॥ जे धुनि.॥ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय नैवेद्यं निर्वामीति.। रत्न वर घनसार वाती, जोय सर्पिस लायके। ज्ञान ज्योति प्रकाश कारण, पुंज सन्मुख आपके।जे धुनि.॥ ___ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय दीपं निर्वपामीति.। संकोच जायक कृमिजपिण्डक, तनुज मोचा चंदनं। इन आदि दशधा, धूपशुष्मा, अष्टकर्महुताशनं॥ जे धुनि.॥ ___ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय धूपं निर्वपामीति.। फलपूर त्रिपुटा चन्द्रबाला लागली जमीरजी। भर थार तुमढिंग धारही द्यो धरा अष्टम धीरजी॥ जे धुनि.॥ ___ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय फलं निर्वपामीति.। कमल मलयज अक्ष सुमनस, चरु दीप सुगन्धजी। फल आदि द्रव्य पूजों, कटेंगे वसु फन्दजी॥ जे धुनि.. ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय अर्घ निर्वपामीति.। घत्ता छन्द जय गुण गण मंडित त्रिभुवन सुन्दर, जजत पुरंदर धर्मधरा। सोमोद्भवतीरा, ध्यान गहीरा, विधि वसु चूरा मुक्तिवरा॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान दोहा श्रीमत सिद्ध अनन्त ते, होय गये गुणमाल। तनकी वर जयमालका, गाय हजारीलाल॥ (छन्द विजयानन्द सेठकी चालमें) जय जय जय अपगा अमृत पूर है। दोहू तट बिटपिन छाया भूरि है॥ षट ऋतुके शाखिन प्रसून सुहावने। पिक कीर सु शब्द करत मन भावने॥ तहां शंखो ऋषनि कुरम्ब विहार है। द्वादश विधि भावना भाव चित्तार है। वसुर्विंशति मूल गुणोंको सम्हारते। षट दुगने उग्र उग्र तप धारते // एकादश दुगुण परीषह जे सहै। तहां कम्पें मेरु अचल सम थिर हैं। केई मुनिको चौसठ ऋद्धि फुरी तहां। मति श्रुति सो अवधिज्ञान धारी जहां। कोऊ मुनिको, ज्ञान चतुर्थ पायके। दशमत्रय गुण स्थानको धायके॥ लह केवल गन्ध कुटी रचना भई। तहां इन्द्र आय प्रदक्षिणा त्रय किई। कोनी थुति गद्य पद्य त्रय योगते। . कर नृत्य सु तिष्ठे थान मनोगतं॥ जिन मुखतं दिव्य ध्वनि अनक्षरी। झेली गणधर द्वादश शाला विस्तरी॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [43 जति श्रावक द्विविध धर्म उपदेशतें। सुन भव सु प्रमुदित भये विशेषतें॥ गति पंचम पाई चतुर्दश थानतें। भये तृप्त सु आतम सुख रस पानतें॥ यह जान सु प्रणमू रेवा कूल कू। मेटो अब मेरी मिथ्या भूल कू॥ शरणागत सरस्त्रलाल पद आयके। मुझे तारो भव भ्रम भार मिटायके॥ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय पूणार्धं निर्व. स्वाहा। . दोहा नदी नर्मदा तीर कू, जो भवि पूजे नित। इन्द्र चन्द्र धरणेन्द्र हो, पावे शिवसुत वित।। __ इत्याशीर्वादः पं. बनारसी उर्फदास (रामपुर स्टेट) रचित-- सत्य पूजा श्री जिनवरके चरण यजूं मन लायके। दोष अठारह नाश किये हरषायके। छियालीस गुण सहित श्री सर्वज्ञ जूं। वीतराग सत हितमित उपदेशी प्रभू॥ ___ॐ ह्रीं श्री परब्रह्मपरमेश्वर देवाधिदेव अत्र अवतर अवतर संवौषट् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव 2 वषट् / परिपुष्पांजलि क्षिपेत्। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44] - नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान अथाष्टक गंगाजल सम निर्मल जल ले, मन वच काय सु धारी। भरी रकेबी जिन चर्ण चढ़ाऊं सर्व मलिनता टारी॥ दोष अठारह रहित जिनेश्वर, छियालीस गुण धारे। सदा पूजू तिन चरण कमलन, मन वच काय संभारे॥ ॐ ह्रीं श्री परब्रह्मपरमेश्वर श्री वीतराग सर्वज्ञ परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय कर्मफलप्रक्षालनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। केशर चन्दनसे घिस जलमें, भर रकेबी हूँ लायो। श्री जिन कृपाद्दष्टि अब कीजे, भव आताप नशायो॥ ॥दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परब्रह्मपरमेश्वर श्री वीतराग सर्वज्ञ परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय कर्मफलप्रक्षालनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। अच्छे तन्दुल रंग जिनोंका, भविजन मन मोहै। - तिन्हें धोय तुम चर्ण चढ़ाऊं, तो अक्षयपद होहै। - ॥दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परब्रह्मपरमेश्वर श्री वीतराग सर्वज्ञ परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय कर्मफलप्रक्षालनाय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। अच्छे तन्दुल रंग केशरमें, युग चरनन तल धारो। कामबाण कर हूँ मैं दुखिया, ताको आप निवारो॥ ॥दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परब्रह्मपरमेश्वर श्री वीतराग सर्वज्ञ परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय कर्मफलप्रक्षालनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। गोला श्वेत स्वच्छ शुभ लेकर, ताको सकल उतारो। गिरी सुडोल बनाय चढ़ाऊं, क्षुधा वेदना टारो॥ ॥दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान _ [45 . गोलेकी सुडोल गिरियां कर, केशरमें रंग लेऊं। तम अज्ञानके नाशन कारण युग चर्णन तल सेऊ॥ दोष अठारह रहित जिनेश्वर, छियालीस गुण धारे। सदा पूजू तिन चरण कमलको मन वच काय सम्हारे॥ ॐ ह्रीं श्री परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। उत्तम बुरादा चन्दनका ले जलसे मैं धोलाऊं। कर्म दहनकू अगनी ऊपर, तुमरे चरण ढिग खेऊ॥ // दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। मीठी बादामकी बीजी, अच्छी और लोंग धोलेऊँ। तुमकू अर्पण करूं प्रभुजी, जासों मोक्षपति होऊँ।। // दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा। जल चंदन अक्षत पुष्प लेकर, नैवेद्य दीप विचारो। - धूप अरु फल मिलाय अर्पण करूं, भव दुःखसे उद्धारो॥ ॥दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (पद्धड़ी छन्द) जय जय अहं तदेव, नित युगल चरणको मिले सेव। जय सिद्ध परमेष्ठिो गुण निधान, तुम चरण यजूं कीजे कल्याण॥ जय सर्वसाहु मुझको निवाहु, मैं पूजूं पद धर उर उछाहु। जिन कथित धर्म जग मांहि सार, वंदू मन वच तन बार बार // Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * 46] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान अतीत चौवीसी भई सिद्ध, तिन सबहिं यजु छहों सुखको वृद्धि। श्री ऋषभ अजित संभव कृपाल, श्री अभिनंदन सुमती दयाल॥ श्री पा सुपारस चन्द्रराय, श्री पुष्पदन्त शीतल सहाय। श्रेयांस वासुपूज्य तार तार, विमलानंत धर्म रु शांत सार॥ श्री कुन्थु अरह श्री मल्लिदेव, श्री मुनिसुव्रत नमि करहुं सेव। श्री नेमि पार्श्व महावीर नाम युग चरण कमलकुं करूं प्रणाम। चौवीस अनागन सुखसार, तिन सबहिं पूज धरूंमुक्तिनार। श्रीविदेह क्षेत्र बिराजमान, शाश्वत वीस जिन गुण-निधान // श्रीमन्दर युगमन्दर विख्यात, श्रीबाहु सुबाहु जगत तात। संजात स्वयंप्रभु दीनानाथ श्री ऋषभभाननजी जगत साथ॥ श्री अनन्तवीर्य तारण तर्ण, सूरो प्रभुजी जग दुःख हर्ण। श्री विशालकीर्तिजी दुखनिवार, श्री वज्राधरजी भयविडार॥ श्री चन्द्रानन चन्द्रबाहु नाम, भुजंगम ईश्वर सुख धाम। श्री नेमीश्वर वीरसेन. देव, महाभद्र को करूं सेव॥ श्री देव यशोधरजी दयाल, श्री अजितवीर्य भव दुःख टाल। तीर्थंकरोंके पांचों कल्याण, मैं नमूं सदा श्रद्धान ठान॥ श्री गर्भ जन्म तप ज्ञान जान, निर्वाण यजू उत्सव महान। अरु पंचकल्याणक भूमिसार, मैं तिनको पूजू बार बार॥ अरु चैत्य कृताकृत सार जेह, पूजूं मन वच तन धार नेह। सदा दासतनी विनती जू यही मुझे रखो शरण अपनी प्रभुजी॥ ॐ ह्रीं श्री वीतराग परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय अर्घ नि.। जो भवि पूजत भाव, कर सर्वदा। मनवांछित साम्राज्य, लहे सुख सम्पदा॥ .. सर्व अनिष्ट नश जांय, दूरै सब आपदा। विघ्न सघन बन दहन, भक्ति प्रभुकी सदा॥ इति आशीर्वादः। Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान 4i7 // नवग्रहोंके जाप्य ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्री पद्मप्रभुजिनेन्द्राय नमः शांतिं कुरु कुरु स्वाहा // 7000 जाप्य // ॐ ह्रीं क्रौं श्रीं क्लीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय नमः शांतिं कुरु कुरु स्वाहा // 11000 जाप्य // ___ॐ आँ क्रौं ह्रीं श्रीं क्लीं भौमारिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय नमः शांतिं कुरु कुरु स्वाहा // 10000 जाप्य // __ॐ ह्रीं क्रौं आँ श्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्री विमल अनंतधर्मशांति कुन्थुअरह नमिवर्धमान अष्टजिनेन्द्रेभ्यो नमः शांति .. कुरु कुरु स्वाहा // 8000 जाप्य // - ॐ औं क्रौं ह्रीं श्रीं क्लीं एं गुरअरिष्टनिवारक ऋषभ अजित संभव अभिनंदन सुमति सुपार्श्व शीतल श्रेयांसनाथ अष्टजिनेंद्रेभ्यो नमः शांतिं कुरु कुरु स्वाहा // 19000 जाप्य // ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्राय नमः शांतिं कुरु कुरु स्वाहा // 11000 जाप्य // __ॐ ह्रीं क्रौं ह्रः श्रीं शनिग्रहारिष्टनिवारकाय श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय नमः शांतिं कुरु कुरु स्वाहा // 23000 जाप्य // . __ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं हूं राहुग्रहारिष्टनिवारक श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय नमः शांतिं कुरु कुरु स्वाहा // 18000 जाप्य // ॐ ह्रीं क्लीं ऐं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय नमः शांतिं कुरु कुरु स्वाहा // 7000 जाप्य // ... कुल जाप्य 1 लाख चौदह हजार हैं जो यथाशक्ति लोंगसे (लवंग) करना चाहिये। __ [ समाप्त ] Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान नवग्रह विधानका नकशा नवग्रह यन्त्र - 81-81 खानोंका नौ कोठोंका प्राचीन 'नवग्रह यन्त्र' जिसमें चारों ओरसे 45 का अंकका ही जोड़, आ जाता है ऐसा यह उत्तम शास्त्रोक्त यंत्र है। कार्ड साईझमें। 10 x 10 मूल्य 3-00 तुर्त मंगावे।। |दिगम्बर जैन पुस्तकालय, खपाटिया चकला, गांधीचौक, सूरत-३. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजन व व्रतोद्यापनके लिये हस्तलिखित पक्के रंगीन मांडने मोटे कपडे पर इस प्रकार तैयार है। इसके हम सोल एजन्ट हैं। साईज 4 // 44 // फीट। पंचकल्याणक 500) तीस चौवीसी 550) समोशरण 550) तेरहद्वीप 750) इन्द्रध्वज 750) ढाईद्वीप 750) वर्तमान चौवीसी 500) नन्दीश्वर 500) जम्बूद्वीप 550) कर्मदहन 500) चौसठऋद्धि 550) दशलक्षण 500) नवग्रह 500) पंचपरमेष्ठी 500) सोलहकारण 500) रत्नत्रय 500) सुदर्शनमेरु वि. 500) तीन चौबीसी 500) पंचमेरु 500) भक्तामर 500) सिद्धचक्र 550) ऋषिमंडल 550) सहस्त्रनाम 550) शांति विधान 500) बीस विरहमान 500) तीनलोक विधान 2 // x2 गजका 750) सभी मांडने रंगीन व पक्के रंगके है। मंदिरोंमें कायम रखनेको अवश्य मंगाइये। मांडने मंगवानेवाले 300) एडवांस भेजें। एडवांस आनेपर ही मांडना भेजा जायेगा। भक्तामर रहस्य जिसमें मुगलकालीन 50 भाव चित्रोंसे सुसज्जित, ललित 48 यंत्रकृतियोंसे मंडित, संशोधित दिव्य यंत्रसे विभूषित, पौराणिक भव्य कथाओंसे अलंकृत भावार्थ, विवेचन, पूजन, विधान आदिसे समर्चित डिमाई साईझमें बढिया कागज पर मुद्रित पृष्ठ 525 मूल्य 80) दिगम्बर जैन पुस्तकालय खपाटिया चकला, गांधीचौक सूरत-३.टे. नं.(०२६१) 2427621 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक ही जगहसे ग्रंथ मंगावे हमारे यहां धर्म, न्याय ज्योतिष, सिद्धांत, कथा, पुराण षट्खण्डागम, धवल, जयधवलके अतिरिक्त पवित्र काश्मीरीकेशर, दशांग, धूप, अगरबत्ती, कांचकी व चांदीकी मालायें, जनोई, जैन पंचरंगी झंडा, बम्बई (शोलापुर) इन्दौर, दिल्ली तीनों जैन परीक्षालयके पाठ्यक्रमकी पुस्तकें मंगवाकर हमारे लिए सेवाका अवसर दीजिये। ग्राहकोंको संतोषित करना हमारा लक्ष्य है। पर्वके अवसर पर आवश्यक्तानुसार उच्चकोटिके जैन ग्रन्थ रत्न पढ़के मनुष्य जन्मसफल बनाईये। एक पत्र लिखकर सूचीपत्र दि खपाटिया चकला, गांधीचौक, सूरत-३ Im/Fax : (0261) 2427621 E-mail : jainmitra@worldgatein.com