________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [43 जति श्रावक द्विविध धर्म उपदेशतें। सुन भव सु प्रमुदित भये विशेषतें॥ गति पंचम पाई चतुर्दश थानतें। भये तृप्त सु आतम सुख रस पानतें॥ यह जान सु प्रणमू रेवा कूल कू। मेटो अब मेरी मिथ्या भूल कू॥ शरणागत सरस्त्रलाल पद आयके। मुझे तारो भव भ्रम भार मिटायके॥ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय पूणार्धं निर्व. स्वाहा। . दोहा नदी नर्मदा तीर कू, जो भवि पूजे नित। इन्द्र चन्द्र धरणेन्द्र हो, पावे शिवसुत वित।। __ इत्याशीर्वादः पं. बनारसी उर्फदास (रामपुर स्टेट) रचित-- सत्य पूजा श्री जिनवरके चरण यजूं मन लायके। दोष अठारह नाश किये हरषायके। छियालीस गुण सहित श्री सर्वज्ञ जूं। वीतराग सत हितमित उपदेशी प्रभू॥ ___ॐ ह्रीं श्री परब्रह्मपरमेश्वर देवाधिदेव अत्र अवतर अवतर संवौषट् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव 2 वषट् / परिपुष्पांजलि क्षिपेत्।