________________ 44] - नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान अथाष्टक गंगाजल सम निर्मल जल ले, मन वच काय सु धारी। भरी रकेबी जिन चर्ण चढ़ाऊं सर्व मलिनता टारी॥ दोष अठारह रहित जिनेश्वर, छियालीस गुण धारे। सदा पूजू तिन चरण कमलन, मन वच काय संभारे॥ ॐ ह्रीं श्री परब्रह्मपरमेश्वर श्री वीतराग सर्वज्ञ परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय कर्मफलप्रक्षालनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। केशर चन्दनसे घिस जलमें, भर रकेबी हूँ लायो। श्री जिन कृपाद्दष्टि अब कीजे, भव आताप नशायो॥ ॥दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परब्रह्मपरमेश्वर श्री वीतराग सर्वज्ञ परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय कर्मफलप्रक्षालनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। अच्छे तन्दुल रंग जिनोंका, भविजन मन मोहै। - तिन्हें धोय तुम चर्ण चढ़ाऊं, तो अक्षयपद होहै। - ॥दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परब्रह्मपरमेश्वर श्री वीतराग सर्वज्ञ परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय कर्मफलप्रक्षालनाय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। अच्छे तन्दुल रंग केशरमें, युग चरनन तल धारो। कामबाण कर हूँ मैं दुखिया, ताको आप निवारो॥ ॥दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परब्रह्मपरमेश्वर श्री वीतराग सर्वज्ञ परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय कर्मफलप्रक्षालनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। गोला श्वेत स्वच्छ शुभ लेकर, ताको सकल उतारो। गिरी सुडोल बनाय चढ़ाऊं, क्षुधा वेदना टारो॥ ॥दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।