________________ ॐ नमः सिद्धेभ्यः नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान श्लोक प्रणम्याद्यन्ततीर्थेशं धर्मतीर्थपवर्तकं / . भव्यविघ्नोपशांत्यर्थ, ग्रहाा वर्ण्यते मया॥ मार्तंडे न्दुकुजसोम्य-सूरसूर्यकृतांतकाः। राहुश्च केतुसंयुक्तो, ग्रहशान्तिकरा नव॥ दोहा आदि अन्त जिनवर नमो, धर्म प्रकाशन हार। भव्य विघ्न उपशान्तको, ग्रहपूजा चित्त धार // काल दोष परभावसौं विकलप छूडे नाहिं। जिन पूजामें ग्रहनकी, पूजा मिथ्या नाहिं // इस ही जम्बूद्वीपमें, रवि-शशि मिथुन प्रमान। ग्रह नक्षत्र तारा सहित, ज्योतिष चक्र प्रमान // तिनहीके अनुसार सौं कर्म चक की चाल। सुख दुख जाने जीवको, जिन वच नेत्र विशाल॥ ज्ञान प्रश्न-व्याकर्णमें, प्रश्न अंग है आठ। भद्रबाहु मुख जनित जो, सुनत कियो मुख पाठ॥ अवधि धार मुनिराजजी, कहै पूर्व कृत कर्म। उनके वच अनुसार सौं, हरे हृदयको भर्म //