________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान - "समुच्चय पूजा दोहा जन्द्र कुज सोम गुरु शुक्र शनिश्वर राहु। . केतु ग्रहारिष्ट नाशने, श्री जिन पूज रचाहु॥ ॐ ह्रौं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक चतुर्विंशति जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / - ___ अष्टक (गीतीका छन्द) क्षीर सिन्धु समान उजवल, नीर निर्मल लीजिये। चौवीस श्री जिनराज आगे, धार त्रय शुभ दीजिये। रवि सोम भूमज सौम्य गुरु कवि, शनि नमो पूतकेतवै। पूजिये चौंवीस जिन ग्रहारिष्ट नाशन हेतवै॥ ___ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विशति तीर्थकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्रामाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।। श्रीखण्ड कुम कुम हिम सुमिश्रित, धिसौं मनकरि चावसौं। चौवीस श्री जिनराज अघहर, चरण चरचों भावसौं। // रवि सोम.॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत अखण्डित सालि तन्दुल, पूंज मुक्ताफलसमं। चौवीस श्री जिनराज पूजन, नाम है नवग्रह भ्रमं॥ .. . ॥रवि सोम.॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।