________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जल गंध सुमन अखण्ड तन्दुल, चरु सुदीप सुधूपकं / फल द्रव्य दुध दही 'सुमिश्रित, अर्घ देय अनूपकं // // रवि सोम.॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (दोहा) श्रीजिनवर पूजा किये, ग्रह अरिष्ट मिट जाय। पंच ज्योतिषी देव, मिल सेवें प्रभु पाय॥ पद्धडी छन्द जय 2 जिन आदिमहन्त देव, जय अजित जिनेश्वर करहिं सेव। जय 2 संभव संभव निवार, जय२ अभिनन्दन जगत तार॥ जय सुमति२ दायक विशेष, जय पद्मप्रभु लख.पदम लेष। जयर सुपार्स हर कर्म फास, जयर चन्दप्रभु सुख निवास॥ जय पुष्पदंत कर कर्म अन्त, जय शीतल जिन शीतल करंत। जय श्रेय करन श्रेयान्स दव, जय वासुपूज्य पूजत सुमेव॥ जय विमलर कर जगत जीव, जयर अनन्तसुख अति सदीव। जय धर्मधुरन्धर धर्मनाथ, जय शांति जिनेश्वर मुक्ति साथ॥ जय कुन्थनाथ शिव-सुखनिधान, जय अरहजिनेश्वर मुक्तिखान। जय मल्लिनाथ पद पद्म भास, जय मुनिसुव्रत सुव्रत प्रकाश॥ जय२ नमि देव दयाल सन्त, जय नेमनाथ तसुगुण अनन्त। जय पारस प्रभु संकट निवार, जय वर्धमान आनन्दकार॥ नवग्रह अनिष्ट जब होय आय, तब पूजै श्रीजिनदेव पाय। मन वच तन मन सुखसिंधु होय, ग्रहशांति रीत यह कहीजोय॥ ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय महाघ निर्वपामीति स्वाहा।