________________ - 221 नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जल चंदन फूलं तन्दुल तूलं, चरु दीपक लै धूप फलं। वसु विधिसे अरचे,वसुविधि विरचै,कीजे अविचल मुक्तिधरं॥ ऋषभ. अजित॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अडिल्ल छन्द मन वच काया शद्ध पवित्र जु हूजिये। लेकर आठों दरव आठ जिन पूजिये॥ मंगलीक वसु वस्तु पूर्ण सब लीजिये। पूरन अर्घ मिलाय आरती कीजिये॥ . ॐ ह्रीं श्री गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो महाघ निर्वपामीति स्वाहा।। जयमाला . सुर गुरु दुख नाशन, कमलपत्रासन, वसुविधि वसुजिन पूजकरं। भव भव अघहरनं, सबसुखकरनं, भव्यजीव शिवधामधरं॥ पद्धड़ी छन्द जय धर्म-धुरंधर ऋषभ धार जय मुक्ति कामनी कन्त सॉर। जय अजिंतकर्म अरि प्रबल जान,जय जीतलियो सगुणनिधान जय सम्भव सम्भव दम्भ छेद,जय मुक्ति रमा लइयो अखेद। जय अभिनन्दन आनंदकार, जय जय जन सुखकर्ता अपार॥ जय सुमति देव देवाधिदेव, जय शुभमतिजुत सुरकरहि सेव। जयर सुपार्श्व सुख परमज्ञान, जय लोकालोक प्रकाशमान॥