Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ * 46] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान अतीत चौवीसी भई सिद्ध, तिन सबहिं यजु छहों सुखको वृद्धि। श्री ऋषभ अजित संभव कृपाल, श्री अभिनंदन सुमती दयाल॥ श्री पा सुपारस चन्द्रराय, श्री पुष्पदन्त शीतल सहाय। श्रेयांस वासुपूज्य तार तार, विमलानंत धर्म रु शांत सार॥ श्री कुन्थु अरह श्री मल्लिदेव, श्री मुनिसुव्रत नमि करहुं सेव। श्री नेमि पार्श्व महावीर नाम युग चरण कमलकुं करूं प्रणाम। चौवीस अनागन सुखसार, तिन सबहिं पूज धरूंमुक्तिनार। श्रीविदेह क्षेत्र बिराजमान, शाश्वत वीस जिन गुण-निधान // श्रीमन्दर युगमन्दर विख्यात, श्रीबाहु सुबाहु जगत तात। संजात स्वयंप्रभु दीनानाथ श्री ऋषभभाननजी जगत साथ॥ श्री अनन्तवीर्य तारण तर्ण, सूरो प्रभुजी जग दुःख हर्ण। श्री विशालकीर्तिजी दुखनिवार, श्री वज्राधरजी भयविडार॥ श्री चन्द्रानन चन्द्रबाहु नाम, भुजंगम ईश्वर सुख धाम। श्री नेमीश्वर वीरसेन. देव, महाभद्र को करूं सेव॥ श्री देव यशोधरजी दयाल, श्री अजितवीर्य भव दुःख टाल। तीर्थंकरोंके पांचों कल्याण, मैं नमूं सदा श्रद्धान ठान॥ श्री गर्भ जन्म तप ज्ञान जान, निर्वाण यजू उत्सव महान। अरु पंचकल्याणक भूमिसार, मैं तिनको पूजू बार बार॥ अरु चैत्य कृताकृत सार जेह, पूजूं मन वच तन धार नेह। सदा दासतनी विनती जू यही मुझे रखो शरण अपनी प्रभुजी॥ ॐ ह्रीं श्री वीतराग परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय अर्घ नि.। जो भवि पूजत भाव, कर सर्वदा। मनवांछित साम्राज्य, लहे सुख सम्पदा॥ .. सर्व अनिष्ट नश जांय, दूरै सब आपदा। विघ्न सघन बन दहन, भक्ति प्रभुकी सदा॥ इति आशीर्वादः।

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52