Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ पहुँचे वसू विमट, सिद्धजिना अनमम सहि नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान - हकीम हजारीलालजी कृत-- श्री नर्मदातटस्थ सिद्ध जिनपूजा दोहा स्त्रोत स्वति सोमोद्भवा, युत्म कूल ऋषि जेह। पहुँचे वसू विश्वंभरा, त्रिविधि थाप धर नेह॥ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतट, सिद्धजिना अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं। अथाष्टक (छन्द गीतीका) क्षीराब्धितें ले सर्वतोमुख, पात्र अष्टापद भरूं। त्रसा आमय हरण वारण, प्रभु चरण अग्र धरूं॥ जे धुनिमें कल कन्यका तट, भये सिद्ध अनंतजू। मैं पूजहुँ मन वचन तनकर, अष्ट कर्म निकंद जू॥ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय जलं निर्वपामीति.। भद्र श्री हिम चालुका विस भर कटोरी गन्धसों। तुम पद अ! शुद्ध मनसे, भवाताप निकंदसो॥जे धुनि.॥ ___ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय चंदनं निर्वपामीति.। खण्डवर्जित विमल तंदुल,शुक्ति उसर समान हैं। जिनपादजों भावसों मैं अखयपदचितथान हैं। जे धुनि.॥ ॐ ह्रीं नर्मदानदी युग्मतटसिद्धजिनाय अक्षतं निर्वपामीति.।

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