Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 26
________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान अथाष्टक (सोरठा) निर्मल शीत सुभाय, गंगाजल झारी भरौ। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा। कुम कुम लेइ घिसाय, कनक कटोरीमें धरौं। ... कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। तन्दुल अक्षत लाय भाव सहित तुष परिहरौ। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। कमल चमेली जाय, जुही कुन्द जु केवरो। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं। ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। विंजन विविध बनाय, मधुर स्वाद युत आचरों। कवि अरिष्ट मिट जाय, पुष्पदन्त पूजा करौं॥ : ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।

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