Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 34
________________ 32 ] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जब राहु गोचर समय दुख दे, देय दुष्ट स्वभावसों। तब नेम जिनके भावसेती, चरण पूजों चावसों॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय जलं निर्व. स्वाहा। श्रीखंड मलय मिलाय केसर, कदली सुत तामें घिसो। जिन चरण चरचत भाव धरके, पाप ताप तबै नसौं॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय चंदनं निर्व. स्वाहा। अक्षत अनुपम सालि सम्भव, कनक भाजन लेइये। जिन अग्रपूंज चढ़ाय भवि जन, एकचित्त मन देइये॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय अक्षतं निर्व. स्वाहा। कमल कुन्द गुलाब गुंजा केतकी करना भले। सुमन लेके सुमन सेती, पूजते जिन अघ टले॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय पुष्पं निर्व. स्वाहा। विंजन विविधरस जनित मनहर क्षुधादूषणको हरे। भर थार कंचन भावसेती, नेमिजिन आगे धरे॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय नैवेद्यं निर्व. स्वाहा। मणिमई दीप अनूप भरके, चन्द्र ज्योति सु जगमगे। निज हाथ लै प्रभु आरती कर, मोह तब ही भगै॥ ॥जब राहु गोचर.॥ ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमीनाथ जिनेन्द्राय दीपं निर्व. स्वाहा।

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