Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 12
________________ : 10] नवग्रह अरष्टनिवारक विधान खण्डरहित अक्षत शशिरुप, पूंज चढाय होय शिवभूप। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो॥चन्द्रप्रभु.॥ 1 ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। कमल कुन्द कमलिनी अभंग, कल्पतरु जस हरै अमंग। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।चन्द्रप्रभु.॥ ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। धेवर बावर मोदक लेऊ, दोष क्षुधाहर थार भरेउ। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।चन्द्रप्रभु.॥ ... ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्रासाय नैवेद्यं निवंपामीति स्वाहा। . मणिमय दीपक घृत जु भरेउ, बाती वरत तिमिर जु हरेउ। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।चन्द्रप्रभु.॥ _____ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। / कालागुरुकी कनी खिवार्य,वसु विधि कर्म जु तुरत नसाय। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।चन्द्रप्रभु.॥ ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक, प्राप्ताय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। .. श्रीफल अम्ब सदा फल लेउ, चोच मोच अमृत फल देउ। जगत गुरु हो, जै जै नाथ जगत गुरु हो।।चन्द्रप्रभु.॥ ... ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा।

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