Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 17
________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [15 वासुपूज्य जिन चरण अर्घ शुभ दीजिए। मंगल ग्रह दुख टार सो मंगल लीजिए। ____ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला मंगल ग्रहं हरनं मंगल करनं, सुखकर शिव-रमणी वरनं। आतम हित करनं भवजल तरनं, वासुपूज्य सेवत चरनं॥ पद्धडी छन्द इन्द्र नरेन्द्र खगेन्द्र जु देव, आय करें जिनवरकी सेव। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो।टेक॥ विजया जननी मन हर्षाय जनक जु वासुपूज्य सुखदाय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ शुभ लक्षण कर लक्षितकाय, चम्पापुर जनमें जिनराय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ महिषा अंक चरनमें परो, देखत सबका संशय हरो। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ फाल्गुन असि जो चौदश जान हो वैराग्य सु धरियो ध्यान। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ घात घातिया केवल पाय, जैनधर्म जगमें प्रगटाय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ षट शत एक मुनीश्वर भयो, गिरिमन्दार शिव लहि गयो। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥ मंगल हेतु जजों जिनराय, मंगल ग्रह दूषण मिट जाय। वासुपूज्य जिनपूजा करो, मंगल दोष सकल परिहरो॥

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