Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ - नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [23 भूतनय दूषण दूर नाश जु सकल आरत टारके। ... श्री वासुपूज्य जिन चरन पूजो हर्ष उरमें धारके॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारकं श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीखण्ड मलय जु महा शीतल सुरभ चंदन विस धरौं। जिन चरन चरचों भविक हित सों पाप ताप सबै हरौं। . ॥भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत अखण्डित सुरभि मंडित थारी भर कर मैं गहों। . अक्षत सु पुंज दिवाय जिन पद अखय पदमें जो लहों। // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। कमल कुन्द गुलाब चम्पा, पारिजातक अतिघने। पहूँच पूजत चरन प्रभुके कुसुम शर तब हो हने॥ . // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।। गौ घृत सद्य मंगाय भविजन दुग्ध मिश्रित शर्करी। चरु चारु लेकर जजों जिनपद, क्षुधा वेदन सब हुरी॥ // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। य. //

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52