Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 16
________________ 14 ] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान मणि जडित कंचन दीप सुन्दर धृत तामें भरों। उद्योत कर जिन चरण आगे, हृदय मिथ्यातम हरों॥ // भूतनय.॥ . ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। काला अगर धन सार मिश्रित देव फूल सुहावने। खेवत धुंआ सो सुरंग मोदित, करत वसु कर्म हने॥ // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताव धूपं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीफल अनार जो आम नींबू, चोच मोच सुधा फलं। जिन चरन चरचत फलन सेती, मोक्षफल दाता रलं॥ // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक. प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा। जल गन्ध अक्षत पुष्प विंजन, दीप धूप फलोत्तम। जिनराज अर्घ चढाय भविजन, लेऊ मुक्ति सुखोत्तमं॥ . // भूतनय.॥ ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। - अडिल्ल सुरभित जल श्रीखण्ड कुसुम तन्दुल भले। विंजन दीपक धूप सदा फल सों रले॥ .

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