Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 21
________________ नवग्रह अरिष्टनिवारके विधान. [19 पद्धड़ी छन्द जय विमल विमल आतम प्रकाश। . षट् द्रव्य चराचर लोक वास। जय जय अनन्त गुण हैं अनन्त। .. सुर नर जस गावत लहे न अन्त॥ जय धर्म धुरन्धर धर्मनाथ। . जग जीव उधारन मुक्ति साथ॥ जय शांतिनाथ जग शांति करन। ___. भव जीवनके दुःख दारिद्र हरन॥ जय कुन्थु जिन कुन्थादि जीव। प्रतिपालन कर सुख दे अतीव॥ जय अरह जिनेश्वर अष्ट कर्म। रिपु नाम लियो शिव रमन शर्म॥ जय नमिय नमिय सुर वर खगेश। इन्द्रादि चन्द्र थुति करत शेष॥ जय वर्धमान जग वर्धमान। - उपदेश देय लहि मुक्ति थान॥ शशि सुत अरिष्ट सब दूर जाय। . . भव पूजे. अष्ट जिनेन्द्र पाय॥ मन वच तनकर जुग जोड़ हाथ। मनसिन्धु जलधि तव नवत माथ॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो अर्घ निर्व.। ये आठ जिनेश्वर नमत सुरेश्वर, भव्य जीव मंगल करनं। मन वांछित पूरे पातक चुरे, जन्म मरण सागर तरनं। इत्याशीर्वादः।

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