Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 23
________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [21 सरल शाली कृष्ण जीरक, वसुमती जो मन हरं। उभय कोटक, अरु अखण्डित, अखय गुण शिवपद धरं॥ ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। चम्पक चमेली, करन केतकी, मालती मरुवो मोल सरं। कमल कुमुद गुलाब कुन्दजु, सरन जुही शिव-तिय वरं॥ . . . ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। घेवरहि सु बावर पुवा पुरेयै, मोदक फैनी घेवरं / सुरहि घृत पय शर्कराजुत, विविध चरु क्षुध क्षयकरं॥ ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मणिकर जड़ित सुवर्ण थाल ले,कदली सुत घृत मांहि तरं। दीपक उद्योतं, तम क्षय होतं, निज गुण लखि भार भरं॥ ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन अगर, लोंग सुतरंग, विविध द्रव्य ले सुरभितरं। खेवत जिन आगे, पातक भागे, धूवा मिस वसु कर्मजरं॥ . ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा। बादाम सुपारी श्रीफल भारी, चोच मोच कमरख सु वरं। लैके फल नाना, शिव सुख थाना, जिनपद पूजत देत तुरं॥ ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो .फलं निर्वपामीति स्वाहा।

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