Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ 12] . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान देह जिनराजकी अधिक शोभा धरे। * स्पटिकमणि कांति तांहि देख लज्जा करे॥चंद्रप्रभु.॥ आठ अरु एक हजार लक्षण महा। दाहिने चरणको निशपति गह रहा॥ चंद्रप्रभु.॥ कहत 'मनसुख' श्री चन्द्रप्रभु पूजिये। सोम दुख नाशके जगत भय धूजिये॥ चंद्रप्रभु.॥ _____ॐ ह्रीं चन्द्रारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। __ पाप तापके नाशको, धर्मामृत रस कूप। चंद्रप्रभु जिन पूजिये होय जो आनंद भूप॥ इत्याशीर्वाद। मंगल अरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्यकी पूजा वासुपूज्य जिन चरण युग भूसुत दोष पलाय। तातें भवि पूजा करो, मनमें अति हरषाय॥ - वासुपूज्यके जन्म समय हरषायके। आये गज ले साज इन्द्र सुख पायके॥ लै मंदिर गिर जाय जु न्हवन करायके। सोंपे माता जाय जो नाम धरायके॥ - ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिकारक श्रीवासुपूज्य जिन! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वानन, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं। कनक झारी अधिक उत्तम रतन जड़ित सु लीजिये। पद्म द्रहको जल सुगंधित कर धार चरनन दीजिये।

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