Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan Author(s): Balmukund Digambardas Jain Publisher: Digambar Jain Pustakalay View full book textPage 9
________________ . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [7 कालगुरु धूप अधिक अनूपं, निर्मल रुपं घनसारं / खेवो प्रभु आगे पातक भागे, जागे सुख दुख सब हरनं॥ // पद्मप्रभु स्वामी॥ प्राप्ताय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीफल ले आओ सेव चढाओं, अन्य अमर फल अविकारं। वांछित फल पावो जिनगुण गावो, दुख दरिद्र वसु कर्महरं॥ ___ // पद्मप्रभु स्वामी॥ ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा। जल चन्दन लाया सुमन सुहाया, तन्दुल मुक्ता सम कहिये। चरु दिपक लीजे धूप सु खेजे, फल ले वसु कर्मन दहिये। // पद्मप्रभु स्वामी॥ ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पूणाघ निर्वपामीति स्वाहा।। सलिल गंध ले फूल सुगन्धित लीजिये। तन्दुल ले चरु दीप धूप खेविजिये॥ कमल मोदको दोष तुरंत ही धूजिये। पद्म प्रभु जिनराज सुसन्मुख हूजिये। ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पूणा निर्वपामीति स्वाहा। . जयमाला जै जै सुखकारी, सबदुखहारी, मारी रोगादिक हरन। इन्द्रादिक आवे, प्रभु गुण गावे, मंदिर गिर मंजन करणं॥Page Navigation
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