Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Harsh Mahakavi, Sanadhya Shastri
Publisher: Krishnadas Academy Varanasi

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Page 10
________________ तस्य राजो बहवो विद्वांसः । तत्रको हीरनामा विप्रः । तस्य नन्दनः प्राज्ञचक्रवर्ती श्रीहर्षः ।' श्रीहर्ष अभी छोटे ही थे कि सभा में एक पंडित ने श्रहीर को राजा के संमुख पराजित कर दिया। श्रीहीर बड़े लज्जित हुए। उस समय तो उसका मुंह बन्द हो गया, पर वे उस जयी पंडित से वैर मानने लगे । मृत्युसमय उन्होंने बेटे श्रीहर्ष से कहा-'बेटे, उस पंडित ने आज मुझे राजा की दृष्टि में गिरा दिया है, मैं बड़ा दुःखी है। यदि मेरे सच्चं पुत्र हो तो इसका ऐसा ही बदला लेना।' श्रीहर्ष ने वचन दिया और श्रीहीर ने परलोक-यात्रा की सोऽद्यापि बालावस्थः । समायां राजकीयेन केन पंडितेन वादिना हीरो राजसमक्ष जित्वा मुद्रितवदनः कृतः लज्जापङ्के मग्नो वर बभार । मृत्युकाले श्रीहर्षं स बभाषे–'वत्सामुकेन पण्डितेनाऽहमाहत्य राजदृष्टो जितः । तन्मे दुःखम् । यदि सत्पुत्रोऽसि तदा तं जयेः क्षमापसदसि ।' श्रीहर्षेणोक्तम् 'ओम्' इति । हीरो द्या गतः।' (प्रबंधकोष ५४-५५)। ___यह श्रीहीरजयी पंडित कौन था? कहा जाता है कि ये प्रसिद्ध मैथिलनैयायिक उदयनाचार्य थे, ( ई० १२०७ के ) चाण्डपंडित के लेख से यही प्रतीत होता है किन्तु जैसा आगे स्पष्ट होगा, उदयनाचार्य और श्रीहर्ष का स्थितिकाल एक नहीं है। ___ और पिता की इच्छा पूरी करने के लिए श्रीहर्ष परिवार का भार विस्वस्त कुटुम्बिजनों पर छोड़ परदेश चल दिये। अनेक विद्वानों, अनेक आचार्यों का सामीप्य पा श्रीहर्ष अल्प काल में ही तर्क, अलंकार, काव्य, गणित, ज्योतिष, व्याकरण, मंत्रविद्यादि के सिद्ध ज्ञाता हो गये । गंगातट पर एक वर्ष तक गुरु से प्राप्त चिन्तामणि मंत्र उन्होंने सिद्ध किया, देवी त्रिपुरा प्रत्यक्ष हुई और श्रीहर्ष को अद्भुत पांडित्य का वर दिया। अद्भुत पंडित श्रीहर्ष अनेक राजसभाओ में जाने लगे, और गोष्ठियों में भाग लेने लगे., पर उनका उद्योग सार्थक न होता था। वे कुछ ऐसे अलौकिक वचन उच्चारते कि किसी को समझ में ही कुछ न आपाता। उनकी विद्या 'अतिविद्या' हो गयी थी। खिन्न श्रीहर्ष पुनः देवी भारती की शरण गये। जब वे प्रत्यक्ष हुई तो श्रीहर्ष ने कहा-'मां, मेरी अतिबुद्धि दोष बन गयी है, कुछ ऐसा

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