Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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अरिहंत नमुक्कारो || इक्कोवि दविच जो मरणकाले || सो जिणवरेदिं दिवो ॥ संसारुज्ञेयण समो ॥ ७७ ॥
मरणनी वखते जो एक पण अरिहंतने नमस्कार थाय तो ते संसार उच्छेद करवाने समर्थ छ एमजिनेश्वर भगवाने कडेलं छे ॥ ७७ ॥
मिंगे किलिकंमा || नमो जिणाणं ति सुकय पणिदालो || कमलदलरको जस्को । जान चोरुति सूलिहिन ॥ ७८ ॥
_rai कर्म करना एवो महावत जेने चोर कहींने शूलीए दीघेलो ते पण 'नमो जिणाणं' एम कतो शुभ व्याने वर्ततो कमलपत्रना जेवी आंखवालो यक्ष थयो ॥ ७८ ॥
नाव नमुक्कार विवजियाई ॥ जीवेण प्रकय करणाई ॥
गहियाणि य मुक्काणि य ॥ प्रांतसो दव्व लिंगाई ॥ ७७ ॥
भाव नमस्कार रहित एवां निरर्थक द्रव्य लिंग जीवे अनंती वार ग्रहण कर्यो अने मूक्यां ॥ ७९ ॥ राणा पागा || गहणे दठो नवे नमुक्कारो ॥
तद सुगर मग्ग गमले । रहुब जीवस्त अपमिहन ॥ ८० ॥
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