Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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आरा
॥७६॥
बीव निकाय वहे ॥ श्रकयंमि कहंपि जो न संभवइ ॥ जव जमल दादारं ॥ तं चयसु चनविहादारं ॥ ६१ ॥
छ जीवनी निकायनो व कर्या विना जे आहार कोइ पण रीते यतो नथी अने ते भव भ्रमणप दुःखनो आधाररूप छे ते माटे चार प्रकारना आहारनो त्याग करो ॥ ६१ ॥
चत्तंमि जंमि जीवाणं ॥ होइ करयलगयं सुरिंदत्तं ॥
सिद्धि सुदं पहु सुलदं ॥ तं चय सु चनविदादारं ॥ ६२ ॥
जे आहारने त्याग कर्ये छते जीवोने हाथेलीमां इंद्रपशुं आवे छे भने सिद्धिनुं सुख पण नकी सुलभ थाय छे ते चार प्रकारना आहारने त्याग करो ।। ६२ ।।
नाणाविद पाव परायणोवि ॥ जं पाविना श्रवसा ॥ जीवो लद सुरतं ॥ तं सरसु मणे नमुक्कारं ॥ ६३ ॥
नाना प्रकारना पापमां तत्पर थएलो एवो पण जीव अंतना बखते जे नवकार पामीने पामे छे ते नवकारने मनने विषे स्मरण करो ॥ ६३ ॥
सुलदान रमणीनं ॥ सुलदं रऊं सुरतणं सुलदं ॥
कुचिय जो ल्हो ॥ तं सरसु मणे नमुक्कारं ॥ ६४ ॥
देवताप
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पयचो.
॥। 36 ।।।

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