Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 150
________________ आरा पयनो. ॥७५। सामाईय चनवीसत्रयाइ॥ श्रावस्सयंमिच प्रेए । जं नामियं सम्मं ॥ तमहं अणुमोपए सुकयं ॥ ५ ॥ सामायक, चउविसत्यो विगेरे छ प्रकारना आवश्यकने विषे जे सम्यक् प्रकारे उद्यम कर्यो होय ते सुकतने हुं अनुमोदुछु ॥ ५४॥ पुत्व कय पुन्न पावाण ॥ सुस्क उस्काण कारणं लोए ॥ न य अन्नो कोवि जणो ॥ ईय मुणिय कुणसु सुहन्नावं ॥ ५५ ॥ पूर्वकत पुन्य अने पाप ते लोकने विषे मुख अने दुःखना कारण छे पण कोइ बीजो माणस कारण नथी एम जाणीने शुभ भाव कर ॥ ५॥ पुचि चिन्नाणं ॥ कम्माणं वेश्प्राय जं मुस्को ॥ न पुणो अवेइआणं ॥श्य मुणिय कुणसु सुहन्नावं ॥५६॥ पूर्वे दृष्ट कर्म करेलां तेनुं वेदबुं तेज मोक्ष कहेवाय पण तेपने नौह भोगवां ते मोक्ष नहि एम जाणी शुभ भाव कर ॥ ५६ ॥ -- जंतु मए नरए नारएणं । उस्कं तितिस्कियं तिरकं ॥ तनो किनिय मित्तं ॥ इय मुणिय कुणसु सुदनावं ॥ ५ ॥ the-505किर1ि5DIA

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