Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 140
________________ आरा ०१ ॥ ७० ॥ करोलीया, कुंती, विळी, मांख, पतंगिया, तीड, भमरा विगेरे जे में चौरिंद्र जीव हण्या होय तेनो मारे मिच्छामे दुकडं हो ॥ १७ ॥ जलयर यजयर खयरा ॥ श्रानट्टि पमाय दप्प कप्पेतुं ॥ पांच दिया दया जं ॥ मिचामि डुक्करुं तस्स ॥ १८ ॥ जलचर, थलचर, खेचर विगेरेने १ निःशुकता, २ उपयोग शुन्यता ३ दर्प विगेरेथी जे में पंचिद्रि जीव हगा होय तेनो मारे मिच्छामि दुकडं हो ॥ १८ ॥ कोद लोह भय दास ॥ परवसेणं मए विमूढेां ॥ जातिय मसञ्च वयणं ॥ तं निंदे तंच गरिदामि ॥ १५ ॥ r क्रोध, लोभ, भय अने हास्यना परवश पणाथकी में मूर्खे असत्य वचन भाष्णुं होय तेने हुं निदुछु अने गरहुंलुं ॥ १९ ॥ hi कवम वाव ॥ मए परं वंचिन श्रोपि ॥ धि दिनं ॥ तं निंदे तं च गरिदामि ॥ २० ॥ जे कपट व्यापारबडे में परने ठगीने थोडं पण धन अण दीधुं लीधुं होय तेने हुं निदु अने गरहुं || दिवं व मस्तं वा ॥ तेरि वा सराग हियएां ॥ AAAAAHöst ALAARNAA ARAAN पपन्नो. 1106||||

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