Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 144
________________ आरा० ॥ ७२ ॥ चनविह कसाय चत्ता ॥ चन वयणा चन पयार धम्म कहा ॥ चन गइ उद निदलणा । श्ररिदंता मन ते सरणं ॥ ३२ ॥ चार कारना (क्रोध, मान, माया, लोभ रूप ) कषाय जेमने त्याग कर्या छे, चार मुखवाला, चार प्रकारनी धर्म कथा कहेनारा चार गतिमा दुखने नाश करनारा अरिहंतो ते मने शरण हो । ३२ ॥ जे प्रकम्म मुक्का ॥ वर केवल नारा मुलिय परमठा ॥ मय ठाणं रदिया ।। अरिहंता मन ते सरणं ॥ ३३ ॥ जे आठ कर्मथी मुक्त छे अने प्रधान केवल ज्ञाने करी जाण्याचे परमार्थ जेमणे, आठ मदना स्थानक रहित एवा अरिहंतो ते मने शरण हो ॥ २३ ॥ जव खित्ते प्ररुहंता ॥ जावा रिप्पदरलेल अरिहंता ॥ जे तिजग पूणिका ॥ अरिहंता मन ते सरणं ॥ ३४ ॥ जे अरिहंतो संसाररूप क्षेत्रमां उपजता नथी अने भाव, अरि ( राग अने द्वेष ) ने इणवे करीने अरिहंत या छे, जे त्रण जगतमां पूजनीक छे, एवा अरिहंतो ते मैंने शरण हो ॥ ३४ ॥ तरिना जव समुदं ॥ रेंनदं उदलदरि लस्क दुल्लंघं ॥ जे सिद्धि सुदं पत्ता ॥ ते सिझ हुंतु मे सरणं ॥ १५ ॥ ARKKANANAMMINANS पत्रो. ॥ ७२ ॥

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