Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 142
________________ भारा । म्ह जिनेश्वर भगवते भाषेला एवा वास अने अभ्यंतर मली बार प्रकारना तपने जे यथाशक्ति न की होय तेने हुं निर्दुए भने गरई ॥ २४ ॥ जोगेसुरिक पह साहगेसु ॥ जं वीरियं न य पननं ॥ . मण वय काशएहि ॥ तं नि दे तं च गरिदामि ॥ १५ ॥ मोदर मार्गना साधक योगने विष मन वचन कायाए करी जे वार्य न फोरव्यू ते निदुषं अने गर । पाणाश्वाय विरमण ॥ पमुहाई तुमं 5वालस वयाई॥ सम्म परित्नावतो ॥ नणसु जहा गदिम नंगाई ॥ १६ ॥ माणातिपात विरमण प्रमुख तमे वार व्रतोने सभ्य प्रकारे रुडी रीते भावता जे भांगावरे लीपा होय ते भांगाए कहो-॥॥२६॥ खामेसु सघ सने ॥ खमेसु तोसें तुमं विगयकोवो।। । परिदरिय पुबवरो॥ सवे मिनित्ति चिंतेसु॥१७॥ तमे कोप रहितपणे सर्व प्राणीमात्रने खमावो अने तेमनुं तमे खमो पूर्व (आगलनु) वैर त्याग करीने सर्व मित्र छ एम चितवो ॥२७॥ पाणाश्वाय मलियं ॥ चोरिक्कं मेहुणं दविण मुठं ॥ . CH.॥ समध्SSBFesses

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