Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 146
________________ आरा 1॥७३॥ मधुकरी (भमरो फुलनी बास ले तेनी पेठे ) वृत्ति करीने जे तालीश दोपे करीने शुद्ध एवं भोजन | अने पाणी जमे छे ते मुनीओमुं मारे शरण हो ॥ ३९ ॥ पंचिंदिय दमण परा ॥ निक्रिय कंदप्प दप्प सरपसरा ॥ . धारंति बनचे । ते मुणीणो हुंतु मे सरणं ॥४०॥ ___पांच इंद्रियोने दमवामां तत्पर कंदर्पनो दर्प (कामदेवनो अहंकार) अने तेना बाणनो प्रसार जेमणे जीत्यो छे एवा अने ब्रह्मचर्य बनने धारण करे छे ते मुनिओ मारे शरण हो ॥ ४० ॥ जे.पंच समिइ समिया ॥ पंच मदन्वय नरुबदण वसदा॥ पंचम.गइ अणुरत्ता ॥ ते मुणिणो हुँतु मे सरणं ॥१॥ जे पांच समितिए समिता. पांच महाव्रतना भारने उपाडवाने वृषभ सरखा, अने पंचमी गति (मोक्ष) मां अनुरक्त एना ते मुनिओ मारे शरण हो ॥४१॥ जे चत्त सयल संगा॥ सम मणि तिण मित्त सत्तुणो धीरा॥ साहंति मुरक मग्गं ॥ ते मुणिणो इंतु मे सरणं ॥४॥ जेमणे सकल संग त्याग कयों छे, मणि अने तरणुं, मित्र भने शत्रु ए जेमने सरखा छे एका जेभो धीर छे भने जे मोक्ष मार्गने साधे छे ते मुनिभो मारे शरण हो ॥ ४२ ॥ जो केवलनाण दिवायरेहि ॥ तिर्सेकरेदि पत्ननो ।। 99.comससस

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