Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 139
________________ एगिदियाण जंकदवि । पुढवि जल जल मारुय तरूणं ।। जीवाण वदो विदिन ॥ मिजामि उक्कम तस्स ॥१५॥ पृथ्वी, अप, तेज, वाउ, वनस्पति ए जे एकेंद्रि जीवोनो में कोइ पण रीते वध कर्यो होय, तेनो मारे मिच्छामि दुबाई हो ॥१४॥ किमि संख सुत्ति पुयर ॥ जलोय गंमोल अलसप्पमुहा ॥ बेइंदिया दया जं ॥ मिहामि कसं तस्स ॥१५॥ करमीया, शंख, जीप, पोरा. अलो, गंडोला, अलसीयां, प्रमुख बेइंद्रि भीयोने के में हग्या होय तेनो मारे मिच्छामि दुई हो ॥१५॥ गहद कुंथु जूभा ॥ मंकुण मंको कीमियाईया । तेदिया हया जं ॥ मिजामि एक्कम तस्स ॥१६॥ गदहीयां, कुंयुआ, जु, मांकण, मंकोटी, कीडी, विमेरे तेइंति जीवोने में हग्या होग तेनो मारे मिच्छामि दुकडं हो ॥ १६॥ करोलिय कुत्तिय विलू ॥ मडिया सलहडप्पय पमुदा॥ चनरिदिया दया जं। मिजामि उकळं तस्स ॥१७॥ विशिपिविकिमिति र AAAAAAAAAAE

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