Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 137
________________ *7485 49eeeeeSUUSPASS tea जे पंच ने नाणस्स ॥ निंदणं जो इमस्स नवदासो॥ जो न क नवधान मिचामि 5क्कम तस्स ॥७॥ ज्ञानना पांच प्रकार, मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव अने केवल तेनी जे निंदा करी होय, अने पली तेमनी जे हांसी करी होय ते, तथा वली जे में तेमनो उपघात कयों होय तेनो मिच्छामि दुक्कडं हो ॥७॥ नाणीवगरण नूयाणं ॥ कवलिया फलिद पुत्रियाईणं ॥ आसायणा कया जं। मिहामि उक्कम तस्स ॥७॥ ज्ञानोपगरणभूत जे कवली, पाटी पोथी विगैरेनी जे काइ आशातना कीधी होय तेनो मारे मिष्यामि दुक्कडं हो ॥८॥ जं समत्तं निसं ॥ कियाइ अविद गुण समान ।। धरियं मएं न सम्म ॥ मिलामि उक्कम तस्स ॥ए॥ निःशंकित, निखित निवितिगिच्छा, अमुद दिहि, उपहणा, स्थिरिकरण, वात्सल्य, प्रभावना ए आठ प्रकारना गुणे सहित एवं जे समकित में न धारण करें होय तेनो मारे मिच्छामि दुक्कई हो ॥९॥ जंन जणिया जिणाणं ॥ जिण परिमाणं च नाव पूया ॥ जं च मन्नत्ति विहिया ॥मिहामि इक्कम तस्स ॥१०॥ . EARSHANPwwwese560555BBee

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