Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 103
________________ 19-251925 1925151565 मने अरिहंत, सिद्ध, साधु, श्रुत अने धर्म ए मंगल छे, तेमनुं शरण पामेलो एवो हूं सावय ( पापकर्म ) वोसिराकुंडुं ॥ ११५ ॥ अरहंता मंगलं मझ ॥ अरहंता मऊ देवया ॥ अरहंते कित्तत्ता | वोसिरामित्ति पावगं ॥ ११६ ॥ अरिहंत ते मने मंगल छे अने अरिहंत तेज मारा देव छे अरिहंतोनी स्तुति करीने हुं पाप बोसिराखुंडं. सिद्ध मंगलं म ॥ सिद्धाय मझ देवया || सिद्धे अ कित्नइत्ताणं । वोसिरामित्ति पावगं ॥ ११७ ॥ सिद्ध मने मंगल छे अने सिद्ध एज मारा देव छे; सिद्धनी स्तुति करीने हुं पाप बोसिराकुंएं ॥ ११७ ॥ प्रायरिया मंगलं मड् ॥ प्रायरिया मा देवया ॥ प्ररिए किन ताणं । वोसिरामित्ति पावगं ॥ ११८ ॥ आचार्य मारुं मंगल छे, आचार्य एज मारा देव छे, आचार्यनी स्तुति करीने हुं पाप वोसिरानवकाया मंगलं मंज्ञ ॥ नवजाय म देवया ॥. नवाए कि नश्ता || वो सिरामित्ति पावगं ॥ ११७ ॥ RANANAS PARRANDARA

Loading...

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154