Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
View full book text
________________
जापयत्रो
4052RAA
उपाध्याय मारुं मंगल छे अने उपाध्याय मारा देव छ; उपाध्यागनी स्तुति करीने हुं पाप वोसिराकुंडं. म०प०
साहब मंगलं मझ साहू'मा देवया॥ ॥५२॥
साहय कित्तिश्ताणं ॥ वोसिरामिति पावगं ॥१०॥ साधु मारे मंगसीक छे, साधु मारा देव छ, साधु महाराजनी स्तुति करीने हुँ पापने योसिराकुंछु.
सिझे नवसंपत्तो॥बरदंते केवलि तिनशि ॥
इत्तो एगयरेण वि॥पएण भाराहन दो॥११॥ सिद्धोनो आशरो लइने अने अरिहंत अने केवलीनो भाववडे आशरो लइने अथवा ए मांहेला गमे ते IS एक पदवडे आराधक होय ॥ १२५५
समुश्न वेपणो पुण ॥ समणो हियएण किंपि चिंतिज्जा ॥
आलंबणाई कांइं॥ काकरा मुणी दुई सहई ॥१२॥ जेने वेदना उत्पन्न थइ छे एवो वळी साधु हृदयवडे कांइक चिंतबे, कांइक आलंबन करीने ते मुनि | दुःखने सहन करे ॥ १२२॥
वेपणासु नश्नासु ॥ किमेस तं निवेअए॥ किंवा आलंवणं किच्चा ॥ तं एक महिनासए ॥१३॥
B SCRESSESPGeFARMES
छन्छ
MAHE
H॥५२॥
न

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154