Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 120
________________ पयसो या०प० _ पाल, अभ्यंतर, उपषि, अने शरीरादि भोजन सोहक पन, रचन, कायाएकरीने सर्वने भावकी वोसिराएं। १९... ... सव्वं पाणारंजं ॥ पञ्चरकामिति अलिय वयणं च ॥ - सव्व मदिनाकारू ।। मेंहुन्न परिग्गर्दै चेव ॥ २० ॥ ___ आ प्रकारे सर्व प्राणीओना आरंभने अलिक ( असस) बचनने सर्व अदनादान ( चोरीने ) मैथुन H अने परिग्रहने पचठ्छु ॥ २० ॥ सम्म मे सब्व नूएसु ॥ वेरं मद्य न केल॥ प्रासान वोसिरित्ताणं समादि मणुपालये ॥१॥ मारे सर्व प्राणी विषे मित्रपणुंके, कोइनी साथे मारे वेर नथी, सर्व वाच्छाओने त्याग करीने हुं समाHDधि राखंर्छ ॥ २१॥ रागं बंधं पसं च ॥ हरिसं दीण नावयं ॥ उस्सुगत्तं जयं सोगं ॥ रई अरई च वोसिरे ॥२२॥ बंधना कारणभूत रांगने तथा द्वेषने, हर्षने, रांकपणाने, चपळपणाने, भयने. शोकने, रातेने, अरविने चोसिराछु ॥ २२॥ RA मकान ६०॥

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