Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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आ०प०
॥ ६२ ॥
• रागेण दोसेपाव ॥ जं, जे प्रकयनुमा पारपणं ॥
जो मे किं त्रिवि जशितं ॥ जमुई तिविदेश सम्मेभिः ॥ २४ ॥
रागे करी, द्वैपे करी, अथवा जे तमारु अहित अकृतज्ञपणाएं करी अने ममादे करी बीजाने में कंड क होय ते हुं मन, वचन, कायाए करी खमाई ॥ ३४ ॥
तिविहं भांति मरणं ॥ बालाएं बालपंक्रियाणं च ॥
तइयं पंक्रिय मरणं ॥ जं. केवलियो अणुमरंति ॥ ३५ ॥
मरण त्रण प्रकारनुं कहेर्छे (१) बाळकोडूं (२) बाळ, पंडितोतुं (३) पंडित मरण जेणे करी केवळीओ मरण पामेछे ॥ ३६ ॥
जे पुण अ-मइया ॥ पयलिय लन्नाय वक्कनावा य ॥
यसमा दिशा मरंति ॥ न ते आरामा असिना ॥ १६ ॥
बळी जे आठ मदवाळा छे ते, नाश पावी हे बुद्धि शेमनी एना, वक्रपणाने धारण करनारा असमाधिए मरेछे, निश्चे ते आराधक कहेला नयी ॥ २६ ॥
मरणें विरादिए ॥ देव डुग्गई उल्लदा य किर बोदी | संसारो यै प्रणती ।। दवई पुणो भाग मस्ताएँ || ३७ ॥
पयो
॥६२॥

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